पृष्ठ:गोरा.pdf/५९

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।- [ १० एक तश्तरीमें कुछ मिठाई और चाय आदि सब सामान सजाकर एक नौकरके हाथमें दे सुचरिता छतके ऊपर आ बैठी, उसी समय दरवान के साथ गोरा भी वहाँ आ पहुँचा। उसका लम्बा डील डौल गोरा शरीर और हिन्दुस्तानी लिवास देखकर सभी विस्मित हो उठे। गोराके माथेमें गोपी-चन्दनका तिलक लगा था। मोटे कपड़ेकी धोती, अँगरखा, मोटे सूतकी चादर, और पैरमें देशी जूता, यही सव उसका पहनावा था । वह मानो वर्तमान कालके विरुद्ध एक मूर्तिमान् विद्रोहकी भाँति श्रा उपस्थित हुआ। उसका ऐसा मेष विनयने भी इसके पूर्व कभी नहीं देखा था। आज गोरा के मन में एक विरोधकी आग विशेष रूपसे जल रही थी। उसका कारण भी था। ग्रहण-स्नानके उपलक्ष्यमें कोई स्टीमर कल सवेरे यात्रियों लेकर त्रिवेणी को रवाना हुआ था। रास्ते में जहाँ-जहाँ स्टीमर ठहरता था वहाँ वहाँ अधिकाधिक स्त्रियाँ दो एक अभिभावक पुरुषों के साथ त्रिवेणी जानके लिए जहाज पर सवार हो जाती थीं। जहाजमें अधिक यात्री हो जाने के कारण और कहीं बैठनेको जगह न रहनेसे, लोगोंमें धक्का मुक्की होने लगी। एक दूसरे को ठेलने लगा । कीचड़ भरे पैरोंसे, जहाज पर चढ़नेके तख्ते पर यात्रियोंकी भीड़ होने के कारण कोई लड़खड़ाकर नदीके जलमें गिरता था, किसीको खलासी ढकेलकर जहाजसे बाहर कर देता था, और कोई किसी तरह जहाज पर चढ़ भी जाता तो अपने सार्थीके पिछड़ जानेसे वह ब्याकुल होता था। बीच बीचमें क्षणिक दृष्टि श्राकर उन यात्रियोंको भिगो देती थी। जहाज में उन सबोंके बैठनेकी जगह कीचड़से भर गई। उन सबोंके चेहरे पर एक त्रास भरी दीनताका भाव छा गया था । वे लोग ऐसे सामर्थ्यहीन और अभागे थे ५६