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गोरा

इतना कहकर उस लड़की ने विनय के मुख की ओर देखा । वे अाखें कैसी विचित्र थीं। उन्हें देखकर यह बात मन ही में नहीं आती कि वे आंखें बड़ी हैं या छोटी, काली हैं या भूरी । पहली नजर पड़ते ही जान पड़ता है कि इस दृष्टि में एक ऐसा भाव है जिसमें सन्देह का लेशमात्र नहीं है । उस दृष्टि में संकोच नहीं है दुविधा नहीं है । वह दृष्टि एक स्थिर शक्तिसे पूर्ण है।

वह लड़की विनय के मुंह की ओर ताक रही थी इसलिये विनय कुछ कहना चाहता था पर मन के भाव को स्पष्ट शब्दों में प्रगट नहीं कर सका। वृद्ध ने विनय से कहा -"देखिये मेरे लिये ब्रान्टी की जरूरत नहीं है।" लड़की ने बीच ही में रोक कर कहा-"क्यों पिता जी डाक्टर साहब तो कह गये हैं।"

वृद्ध ने कहा-'डाक्टर लोग यों ही कहा करते हैं। उनकी तो ऐसी श्रादत ही है। मुझ में कुछ कमजोरी आ गई है वह केवल गर्म दूध के पीने से ही जाती रहेगी, और अब आप को क्यों तकलीफ देती हो। हमारा घर तो पास ही है। हलते टहलते चले चलेगें ।

लड़की ने कहा-"नहीं पिता जी यह नहीं हो सकता।'

वृद्ध इसके बाद फिर कुछ न कह सके। विनय स्वयं जाकर गाड़ी ले आया । गाड़ी पर चढ़ने से पहले वृद्ध ने विनय से पूछा- "आपका नाम क्या है।"

विनय ने कहा--"मेरा नाम विनय भूषण चट्टोपाध्याय और अपका । बुद्ध ने कहा "मेरा नाम परेश चन्द्र भट्टाचार्य है । पास ही ८७ नं. वाले मकान में रहता हूँ; कभी फुरसत होने पर मेरे घर पधारियेगा तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी।

लड़की ने विनय के मुख की और अपनी दोनों अांखें उठाकर चुपचाप इस अनुरोध का समर्थन किया, विनय उसी समय उस गाड़ी पर बैठकर उन लोगों के घर जाने को तैयार था पर ऐसा करना शिष्टाचार के अनुकूल होगा या नहीं यह टीक निश्चय न कर सकने के कारण बह जहां का तहां