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गोरा

गोरा अस्त के कारण अश्रद्धा करूँ । आकारकी निन्दा करनेसे क्या वह छोटा हो जायगा ? आकारके रहस्यका भेद कौन पा सका है ? परेश बाबूने नम्रभावसे कहा आकार नाशवान् है; उसका अन्त अवश्यम्भावी है। गोरा--जिसका आदि होगा उसका अन्त मा अवश्य होगा, आश्चर्य क्या हैं ? अन्त न रहनेसे प्रकाश न होगा। अनन्त ब्रह्मने अपने को प्रकाशित करने ही के लिए अन्तका आश्रय ग्रहण किया है। अन्त उसी अनन्तके अन्तर्गत है। अन्त ही उससे प्रकाशका विधायक है। उदय भीतर ही प्रकाशकी स्थिति है। किसी वस्तुके प्रकाश से ही सम्पूर्णताका बोध होता है । वाक्यके भीतर जैसे भाव रहता है वैसे ही श्राकारके भीतर निराकार भी सम्पूर्ण रूपसे मौजूद है। वरदासुन्दरीने कहा-निराकारसे बढ़ कर आकार है, यह आप क्या कहते हैं ? गोरा-अगर मैं न भी कहूँ तो इससे कुछ न होता । जो जैसा है वह वैसा ही रहेगा। संसारमें आकार मेरे कहने के ऊपर निर थोड़े ही है । यदि निराकारकी ही यथार्थ परिपूर्णता होती तो श्राकारको कहीं जगह न मिलती। सुचरिता मन ही मन कहने लगी, कोई ऐसा होता जो इस उद्दण्ड युवकको विवादमें एकदम हराकर इसे ऐसा गिराता कि फिर यह कमी श्राकारका नाम न लेता। विनयको चुपचाप गोराकी बातें सुनते देखकर वह भीतर ही भीतर कुढ़ने लगी । गोरा इस उत्तेजना के साथ बातें कर रहा था कि उस उत्तेजनाको दबा देनेके लिए सुचरिता मनही मन उत्तेजित हो उठी। इसी समय नौकर चाय बनानेके लिए केटली में गरम पानी लाथः । सुचरिता उठकर चाय तैयार करने लगी। विनयने बीच-बीच में दो एक बार चकित दृष्टिसे सुचरिताके मुंहकी ओर देखा । यद्यपि उपासनाके सम्बन्ध में गोराके साथ विनयका विशेष मतभेद न था तो भी गोरा जो इस ब्राह्म