पृष्ठ:गोरा.pdf/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ६७
गोरा

गोरा [ यह कह कर और गोराके साथ कुछ गप शप न कर हारान बाबूने चायके प्याले की ओर मन लगाया। उस समय दो एक इने गिने बङ्गाली सिविल सर्विस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर इस देश में आये थे ! सुधीरने उन्हींमें से एक व्यक्ति की अभ्यर्थना की बात छेडी । हारान बाबूने कहा—परीक्षा में वङ्गाली चाहे कितना ही पास करलें, किन्तु उनके द्वारा कोई काम न होगा। कोई बङ्गाली मैजिस्ट्रेट या जज जिले का मार लेकर कभी काम न चला सकेगा, इसको साक्ति करनेके लिये हारान बाबू बङ्गालियोंके चरित्र-सम्बन्धी नाना दोष और दुर्बलताकी व्याख्या करने लगे। मुनते-सुनते गोराकी नौहें चढ़ गई, मुँह लाल होगया ! उसने अपने सिंहनादको यथा साध्य रोककर कहा- यदि सत्य ही यह आपका मत है तो आप आरामसे कुरसी पर बैठे पाव रोटी किस मुंहसे चबा रहे है ? हारानवाबूने भौहें सिकोड़कर कहा--तो आप क्या करनेको कहते हैं ? गोरा हो सके तो बङ्गालियों के चरित्रगत दोषों को दूर कीजिए, नहीं तो गले में फांसी लगाकर मर जाइए। हमारी जाति के द्वारा कभी कुछ न होगा, यह बात क्या यों ही सहज कह देने की है ? यह बात कहते समय आपके गले में रोटी क्यों न अटक गई ? हारानवाबू-सच बोलने में क्या डर है ? गोरा-आप क्रोध न करें, यदि यह बात आप यथार्थ में ही सच-सब जानते तो इस प्रकार अहंकारसे न बोलते। आप हृदयसे इस बात को असत्य जानते हुए भी किसी कारणवश सत्य मान बैठे हैं, इसी से इतनी शीत्र यह वात आपके मुंहसे निकल गई । हारानबाबू, झूठ पाप है झूटी निन्दा और भी बड़ा पाप है; अपनी जातिकी भूटी शिकायतसे बढ़कर तो शायद ही कोई पाप होगा। हारानबाबू क्रोधसे अवीर हो उठे । गोराने कहा-क्या आप ही एक 2