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गोरा

गोरा [ ६६ सा हो गया था। किसी नये ब्यक्ति के पाते ही वह समझ जाती थी कि वह कापी दिखलानी होगी, बल्कि वह इसके लिये प्रतीक्षा करने लगी थी ! आज तर्ककी बातोंमें उलझ जानेसे वह उदास हो गई थी। विनयने कापी खोलकर देखा, उसमें कवि सूर और लांगफेलो की अँगरेजी कविता लिखी थी । अक्षर खूब बना बनाकर लिखे गये थे । कविताओं के शीर्षक और प्रारम्भ के अक्षर रोमन अक्षरों में लिखे गये थे। यह लिपि देखकर विनयके मनमें बड़ा ही आश्चर्य हुश्रा । उन दिनों सूरकी कविताको कापीमें हाथसे लिख डालना त्रियोंके लिए कम बहादुरीकी बात न थी। विनयके मनको यथार्थ रूपसे समाविष्ट देख वरदासुन्दरीने अपनी मँझली बेटी ललिता से कहा- मेरी लक्ष्मी, वेटी ललिता, तुम्हारी वह कविता- ललिता कठोर स्वरमें बोल उठी-"नहीं माँ, यह मुझसे न होगा, मुझे टीक-टीक बाद भी तो नहीं है। यह कहकर वह एक खिड़कीके पास खड़ी हो सड़ककी ओर देखने लगी। वरदासुन्दरीने विनयको समझा दिया, इसको सब कुछ याद है, किन्तु इसकी प्रकृति बड़ी गढ़ है। अपने गुणको छिपाये रहती है। किसीके निकट अपनी विद्याका प्रकाश करना नहीं चाहती। यह कहकर उसने ललिताकी विचित्र विद्या-बुद्धिके परिचयके प्रमाणस्वरूप दो एक घटनाएँ विस्तार पूर्वक कह सुनाई कि ललिता बचपन से ही ऐसी है। यह किसीके साथ वहुत बोलचाल नहीं करती। शोकके अवसर पर मी शायद किसीने इसकी आँखों में आँसू न देखे होंगे। इस सम्बन्धमें पिताके साथ इसका सादृश्य बताया गया अर्थात् इस लड़कीमें यह गुण पिताके अनुरूप ही है। अब लीलाकी बारी श्राई । उससे कुछ पढ़नेका अनुरोध करतेही वह पहले खूब जोरसे खिलखिला उठी, पीछे ग्रामोफोनकी तरह बिना कुछ अर्थ समझे “Twinkle-Twinkle stars" कविता एक ही दममें पढ़ गई।