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गोरा

गोरा ललिताने उसका हाथ हटाकर कहा-नहीं, क्रोध क्यों करूँगी? तुम बैठो ना। सुचरिताने उसका हाथ पकड़ कर खींचा और कहा-चजों बहिन सोने चले। ललिता कुछ उत्तर न दे चुपचाप खड़ी रही। अन्तमें सुचरिना उसको जबर्दस्ती खींचकर सोने के कमरे में ले गई। ललिताने अनख कर कहा तुमने क्यों इतनी देर की ? जानती नहीं, ग्यारह बज गये। मैं बड़ी देर तक तुम्हारे पानेकी राह देखती रही ! तुम न आई तब हार कर मैं उठी और छत पर गई। अब तो तुम सो रहोगी। सुचरिताने ललिताको अपनी छातीसे लिपट कर कहा--हिन, आज मुझसे भारी अन्याय हो गया क्षमा करो। इस प्रकार सुचरिताके अपराध स्वीकार करने पर ललिता के मनसे क्रोध जाता रहा । वह एकदम विनीत होकर बोली-बहिन तुम इतनी देर तक अकेली बैठकर किसकी बात सोच रहीं थीं ? हारान बाबू की बात तो नहीं ? सुचरिता उसके गालमें हलका सा तमाचा मार कर बोली-दूर । हारान बाबूसे ललिता की नहीं बनती थी, यहाँ तक कि उसकी अन्य बहिनोंकी तरह हारान बाबूकी बात छोड़कर सुचरिता के साथ ठठोली करना भी ललिताके लिये असाव्य था । हारान बाबू सुचरिता से ब्याह करना चाहते हैं, इस बातका स्मरण होनेसे भी उसे क्रोध हो जाता था । कुछ देर चुप रह कर ललिता फिर बोली - अच्छा बहिन, विनय बाबू तो अच्छे जान पड़ते हैं ? सुचरिता के मनका भाव जानने ही के अभिप्रायसे शायद प्रश्न किया गया था । सुचरिता--हाँ, विनय बाबू अच्छे क्या, बड़े अच्छे हैं ।