८०] गोरा मेल जोल परस्पर उतना विरोधी नहीं जान पड़ा ! मामला क्या ऐसा ही था, बात क्या ऐसी ही चिन्ताकी थी । कभी नहीं ! यों कह कर कल रातकी मानसिक पीडाका ख्याल करके आज विनय श्राप अपनी बेव- कूफी पर हँसने लगा। विनय कंधे पर एक चादर डाल कर तेजीके साथ गोराके घर में आकर उपस्थित हुआ । गोरा उस समय नीचेकी बैठक में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था । विनय जिस समय रास्ते में था, तभी गोराने उसे देख लिया था। किन्तु आज विनयके आने पर भी अखबार के ऊपरसे गोराकी दृष्टि नहीं हटी । विनयने आते ही कुछ कहे सुने बिना चटसे गोराके हाथसे अखवार छीन लिया। गोराने कहा-शायद तुम भूलते हो- मैं हूँ गौरमोहन-एक कुसं- स्कारोंसे घिरा हुआ हिन्दू । विनयने कहा--भूलते शायद तुम्ही हो । मैं हूँ श्रीयुत विनय - उक्त गौरमोहनके कुसंस्कारांसे घिरा हुआ मित्र । गोरा-किन्तु गौरमोहन इतना बड़ा बेहया है कि वह अपने कुसं- स्कारके लिये कभी किसीके आगे लज्जा का अनुभव नहीं करता। विनय-विनय भी ठीक वैसा ही है । मगर हाँ फर्क इतना ही है कि वह अपने संस्कारको लेकर दूसरे पर हमला करने नहीं जाता। देखते ही देखतं दोनों मित्रों में करारी बहस छिड़ गई। यहाँ तक कि अड़ोसी-पड़ोसी और महल्ले भर के लोग समझ गये कि आज गोरासे विनयकी भेट हुई है। गोराने कहा अच्छा तुम परेश बाबूके घर आते जाते हो; यह बात उस दिन मेरे आगे अस्वीकार करने की क्या जरूरत थी ? विनय-किसी जरूरतके कारण मैंने स्वीकार नहीं किया था। मैं पाता जाता था ही नहीं और इसीसे आना जाना अस्वीकार किया था । इतने दिनके बाद कल ही पहले पहल मैंन उस घर में पैर रक्खा या! 1