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गोरा

८२ गोरा मालूम होता है, किन्तु . उतने के लिए, जब तुम अपने सम्पूर्ण देश को अनायास कष्ट पहुँचा सकते हो, तब तुमसे कहीं अधिक कष्ट मालूम होता है। विनय-तो सच बात कहूँ माई गोरा, एक प्याली चाय पीने से अगर वह सम्पूर्ण देशको चोट पहुंचाना है, तो मेरी समझ में वह चोट ऐसी है कि उससे देश का उपकार ही होगा। उस आघातसे देशको बचाकर चला जायगा तो उससे देश अत्यन्त दुर्बल और बाबू बन जायगा । गोरा-अजी जनाब इन सब युक्तियांको मैं जानता हूँ । · मुझे एकदम इतना नादान न समझना । किन्तु ये सब इस समय की बातें नहीं हैं। रोगी लड़का जब दवा खाना पीना नहीं चाहता तब शरीर स्वस्थ होने पर भी माँ खुद दवा खा पीकर उसे जताना चाहती है कि तेरी और मेरी एक ही दशा है । यह तो व्यक्ति की बात नहीं है - यह प्यार की बात है। प्यार अगर न रहे, तो चाहे जितनी युक्ति क्यों न हो, लड़के के साथ माता का सम्बन्ध नष्ट हो जाता है ऐसा होने पर कार्य भी नष्ट होता है। मैं भी उस चायकी प्यालीको ले कर बहस नहीं करता किन्तु देश के साथ सम्बन्ध-विच्छेदको मैं सहन नहीं कर सकता। चाय न पीना उसकी अपेक्षा · बहुत सहज है-परेश बाबू की लड़की के मन को कष्ट देना उसकी अपेक्षा बहुत छोटा है। समल देशके संग एकात्म रूपसे मिलना हम लोगोंकी इस समय की अवस्था में सब कामोंकी अपेक्षा प्रधान कार्य है --जब वह मिलन हो जायगा, तब चाय पीना चाहिए या न पीना चाहिए, इसे तर्क मीमांसाकी दो बातो में मालूम ही हो जायगा। विनय-तब तो देखता हूँ, मेरे दूसरी प्याली चाय पीने में बहुत देर है। गोरा-न, अधिक देर करनेकी दरकार नहीं है। किन्तु. विनय, मुझे तब क्यों घेरते हो ? हिन्दू समाजकी अनेक अप्रिय चीजोंके साथ ही "