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गोरा

गोरा - मुझे मी छोड़ देनेका समय आगया है। नहीं तो. परेश बाबूकी लड़कियोंके मनको चोट पहुंचेगी। इसी समय अविनाशने आकर बैठक में प्रवेश किया। वह गोराका शिष्य है । वह गोराके मुखसे जो सुनता है, उसीको अपनी बुद्धिके द्वारा छोटा और अपनी भाषाके द्वारा विकृत करके चारों ओर कहता फिरता है। गोराकी बातोंको जो लोग जरा भी नहीं समझ पाते, वेही अविनाशकी बातो को खूब अच्छी तरह समझते हैं, और प्रशंसा करते हैं । बिनयके ऊपर अविनाशक मनमें एक अत्यन्त ईका भाव है। इसीसे वह मौका पाते ही विनयके साथ मूर्खकी तरह तर्क वितर्क करनेकी चेष्टा करता है। विनय उसकी मूर्खतासे अत्यन्त अधीर हो उठता है- तव गोरा अविनाशके पक्षको खुद लेकर विनयके साथ वहस करने लगता है । अविनाश उस समय यही समझता है कि उसीकी युक्तियाँ जैसे गोराके मुखसे निकल रही हैं। अविनाशके आ जाने से गोराके साथ बात करने में विनयको बाधा पहुंची। तब वह उठकर कार चला गया। आनन्दमयी भंडार घरके सामने बरामदेमें बैठी तरकारी काट रही थं आनन्दमयीने कहा--बहुत देरसे तुम्हारी आवाज सुन रही हूँ विनय । आज इतने सवेरे कैसे आ गया ? जलपान करके तो चले थे ? और दिन होता तो विनय कह देता कि नहीं, कुछ नहीं स्वाया- पिया, और आनन्दमर्याके सामने बैठ कर उनसे माँग कर मजेसे भोजन करता । किन्तु आज उसने कहा --नहीं माँ, खाऊंगा नहीं। जलपान करके घर से आया हूँ। अाज विनयने गोराके निकट अपना अपराध बढ़ाना नहीं चाहा। परेश बाबूके साथ उसका जो संसर्ग हुआ है, उसके लिए गोराने अभी तक उसको क्षमा नहीं किया । उसे वह जैसे अपनेसे कुछ दूर ठेल रखना चाहता है, यह अनुभव करके विनय अपने मनके भीतर एक तरह के