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गोरा

गोरा [ ८७ अस्थिर कर दिया। अन्तमें लाचार होकर विनयने कहा- मुझको जरा सोचने विचारनेका समय दीजिए । महिम--मैं अाज ही रातको तो ब्याह करने के लिए नहीं कहता। विनय-तो भी घर के आदमियों की... । महिम - हाँ सो तो है ही। उनकी राय तो लेनी ही होगी। तुम्हारे चाचा मौजूद हैं, उनकी सलाह के बिना तो कुछ हो नहीं सकता। इतना कह कर पाकेटसे पानोंका दूसरा दोना भी निकाल कर उसे समाप्त कर और ऐसा भाव दिखा कर जैसे बात बिल्कुल पक्की हो गई है महिम चल दिया। कुछ दिन पहले अानन्दमयीने एक बार शशिनुखीके साथ विनयके व्याहका प्रस्ताव स्पष्ट रूपसे इशारेसे उठाया था। किन्तु विनयने जैसे उसे सुनाही नहीं । आज भी यह वात नहीं थी कि यह प्रस्ताव विनयको विशेष संगत था उचित जान पड़ा हो, किन्तु तो भी इस बातने उसके मन में जैसे कुछ जगह पाई। विनयने सोचा यह विवाह हो जाने पर गोरा किसी दिन उसे आत्मीयताके सम्बन्धले ठेल कर दूर नहीं कर सकेगा । विवाह व्यापारको हृदयके आवेगके साथ शामिल करने को अँगरेजी ढंग समझ कर ही अब तक विनय इस बातको एक दिल्लगी समझता आया है । और यही कारण है कि शशिमुखीके साथ ब्याह करना उसे आज उतना असम्भव नहीं जान पड़ा है। सच तो यह है कि उसने विवाहको कमी उतना महत्व ही नहीं दिया । महिम के इस प्रस्तावको लेकर गोराके साथ सलाह करनेका एक बहाना मिल गया, यह सोचकर फिलहाल विनय खुश ही हुआ । विनयकी इच्छा है कि गोरा इस बातके लिए उस पर जरा जोर डाले । विनयको इसमें जरा भी सन्देह नहीं था कि महिमको सहजसे स्वीकृति न देने से महिम गोराके द्वारा उसके अनुरोध करानेकी अवश्य चेष्टा करेगा। इन्हीं सब बातोंकी आलोचना करके विनयकी चिन्त। दूर हो गई। वह उसी समय गोरात्रै घर जानेको तैयार होकर घरसे निकल पड़ा।