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गोरा

लड़का-मेरा नाम श्री सतीशचंद्र मुखोपाध्याय है।

विनय ने वित्मित होकर—मुखोपाध्याय ?

उसके बाद धीरे धीरे सब परिचय प्राप्त हुआ । परेश बाबू इन लोगों के पिता नहीं है। उन्होंने इन दोनों भाई बहनों को लड़कपन से ही पाला है लड़के की बहन का नाम पहले राधारानी था, परेशबाबू की स्त्री ने उसे बदल कर सुचरिता नाम रक्खा है।

देखते ही देखते विनय के साथ सतीश की खूब घनिष्टता हो गई। सतीश जब घर जाने को उद्यत हुआ, तब विनय ने कहा--तुम अकेले चले जा सकोगे?

बालक ने गर्व के साथ कहा---मैं तो अकेले ही अाया हूँ, जा क्यों न सकंगा?

फिर भी विनय ने कहा- मैं तुमको घर तक पहुँचा आऊ, चलो।

उसकी शक्ति के अपर विनय का यह सन्देह देखकर सतीश क्षुब्ध हो उठा। उसने कहा-क्यों, मैं अकेला जा सकता हूँ ! इतना कहकर वह अकेले आने जाने के अनेक आश्चर्यजनक उदाहरणों का उल्लेख करने लगा। किन्तु अब भी विनय उसके घर के दरवाजे तक साथ क्यों गया, इसका ठीक कारण बालक की समझ में बिल्कुल ही नहीं आया । सतीशने द्वार पर पहुँच कर पूछा-श्राप भीतर नहीं चलेंगे ?

विनय ने कहा--और किसी दिन आऊंगा।

घर लौट आकर विनय ने वह सरनामा लिखा हुअा लिफाफा जेब से

निकाल कर बहुत देर तक देखा-हर एक अक्षर की रेखाएँ जैसे उसके हृदय में अंकित हो गई। उसके बाद मव रुपयों के वह लिफाफा उसने बड़े यत्न से अपने वक्स में रख दिया । इन रुपयोंको किसी दुःसमय में भी सर्व करने की संभावना नहीं रहीं।

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