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गोरा

गोरा . सम्भव है कि उनका बाहरका कर्तव्य अच्छी तरह सरन न होता हो श्राप भी क्या अपने मित्र की रायसे सहमत हैं ? नारी-नीतिके बारे में अब तक तो विनय गोरा के मतका ही साथ देता श्रा रहा था। इस विषयको लेकर उसने पत्रों में लेख भी लिखे हैं । किन्तु इस समय यह बात उसके मुखसे निकलना नहीं चाहती थीं कि उसका मत भी यही है । उसने कहा-देखिये, असल में इन सब बातोमें हम लोग अभ्यासके दास हैं अर्थात् प्राचीन संस्कारके पक्षपाती हैं। इसी कारण औरतोंको बाहर निकलते देखतेही मनमें खटका सा लगता है। यह तो हम केवल जोर करके जवरदस्ती प्रमाणित करनेकी चेष्टा करते हैं कि अन्याव या अकर्तव्य होने के कारण औरतोंका घरसे बाहर निकलना खराब लगता है । युक्ति यहाँ उपलक्ष्य मात्र है, संस्कार ही असल चीज है सुचरिताने धीरे-धीरे खोद खोद कर गोराके सम्बन्धकी आलोचनाको बन्द न होने दिया। विनय भी, गोराके . पक्षमें उसे जो कुछ कहना था सो. खूब अच्छी तरह स्पष्ट रूपसे कहने लगा। गोरा भी शायद अपने मतको इस तरह सष्ट करके न कह सकता । इस अपूर्व उत्तेजनामें विनय की त्रुद्धि और विनयके प्रतिपादनकी-हृदयके भाव को व्यक्त करनेकी---. तमताले सुचरिताके मनमें एक अपूर्व अानन्द उत्पन्न होने लगा। विनयने कहा-~देखिए, शास्त्र में कहा है, अात्माने बिधि--अपने की जानो। नहीं मुक्ति किसी तरह नहीं है। मैं आपसे कहता हूं, मेरा मित्र गोरा भारतवर्ष के उसी अात्मवोधके प्रकाश रूप से प्रकट हुआ है। मैं उसे साधारण आदमी नहीं समझ सकता। हम सब लोगोंका मन जब तुच्छ आकर्षणके फेर में पड़कर नवीनके प्रलोभन में बाहरकी ओर विक्षेप में पड़ा है, तब वही एक आदमी ऐसा है, जो उस सारी विक्षितताके वीचमें अटल भावसे खड़े हो कर सिंहकी तरह गरज कर वहीं पुरातन मंत्र कह रहा है-अात्मानं विद्धि । बिनय आज प्रेश बाबूके घरसे सबेरे ही बिदा होकर गोराके महाँ जानेका निश्चय करके आया था | खास कर गोराकी चर्चा करते