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गोरा

६२ ] गोरा हो कर विनयने सिर नीचा कर लिया। किन्तु अपने मन में उसने बष्ट समझ लिया कि मुझे ही इस दलको दलदल में देख कर मोरा ऐसे प्रबल वेग से विमुख होकर चला गया। इतनी देर तक विनयके मन में जो एक आनन्द का प्रकाश जल रहा था, वह एकदम जैसे बुझ गया । सुचरिताने विनयके मनके भाव और उसके कारणको उसी समय ताड़ लिया, और विनय ऐसे मित्र के प्रति गोराका यह अविचार तथा ब्रह्म लोगों पर उसकी यह अन्यावपूर्ण अश्रद्धा देखकर गोराके ऊपर सुचरिता- को क्रोध आ गया । उसने मन ही मन किसी तरह गोराके परास्त होनेकी इच्छा की।