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गोरा

-- ६४ ] गोरा यह जान कर कि उस नाराजीको दूर करने के लिए विनयका उसके पास न आना किसी तरह सम्भव ही नहीं है, अपने सारे काम-काजमें भी विनय के पैरोंकी आहटके लिए कान खड़े किए हुये उसकी प्रतीक्षा में बैठा था। समय निकल गया-विनय न अाया.। लिखना छोड़ कर गोरा उठने ही वाला था, इसी समय महिम अाकर अस्थित हुए। आते ही कुर्सी पर बैठ गये, और बिना किसी प्रकारकी भूमिकाके कहने लगे-शशिनुखीके ब्याहके बारे में क्या सोचा, गोरा ! गोराने किसी दिन इस विषय पर ध्यान ही नहीं दिया था, इसीसे उसे अपराधीकी तरह चुप रह जाना पड़ा। गोरासे जब कोई उचित उत्तर महिमा को न मिला तब उन्होंने गोरा को इस चिन्ता सङ्कट से उबारने के लिए विनयकी बात उठाई। इस प्रसंगमें विनयकी बात उठ सकनेको गोरा ने कभीस्वप्न में भी नहीं सोचा था । विशेष करके गोरा और विनयने यह निश्चय किया था कि वे विवाह न कर के देश के काममें ही जीवन अर्पण कर देंगे । इसीसे गोराने कहा--विनय क्यों ब्याह करेगा ? महिमने कहा-जान पड़ता है, यही तुम्हारा कट्टर हिन्दूपन है । हजार चोटी रखो और तिलक लगाओ, साहबी ढङ्ग तुम्हारी हड्डियोंमें बसा हुआ है। जानते हो, शास्त्र के मतसे विवाह ब्राह्मण के लड़केका एक जरूरी संस्कार है ? महिम बाबू आजकल के लड़कोंकी तरह प्राचार लंघन भी नहीं करते, और उधर शास्त्रको पर्वाह भी नहीं करते। होटल में भोजन करके बहादुरी दिखानेको भी वह बहुत बढ़ जाना समझते हैं, और उधर गोराकी तरह श्रुनिस्मृतिक मतको लेकर रगड़-झगड़ करना भी प्रकृतिस्थ आदमी का लक्षण नहीं समझते । किन्तु यस्मिन देशे यदा चरः के वह कायल है। इसीसे गोराके आगे उनको कार्य सिद्धिके लिहाजसे शास्त्रकी दुहाई देनी पड़ी। यह प्रस्ताव अगर दो दिन पहले अागे आता तो शायद गोरा इस पर बिल्कुल ध्यान ही न देता। किन्तु आज उसे जान पढ़ा कि बात