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गोरा

गोरा [६५ 1 बिल्कुल उपेक्षाके योग्य भी नहीं है। कमसे कम इसी प्रस्ताव को लेकर अभी विनयके घर पर जानेका एक बहाना तो मिल गया । अंतमें गोराने कहा ---अच्छी, विनयका भाव क्या है, यह तो पहले देख सुन लूं। महिमने कहा- उसके देखने सुनने की अब जरूरत नहीं है। तुम्हारी बातको वह किसी तरह टाल नहीं सकेगा । वह ठीक हो गया है, अब तुम्हारे कहने भरकी कसर है। उसी सन्ध्याके समय गोरा विनयके घर पर आकर उपस्थित हुआ। आँधीकी तरह घरमें प्रवेश करके गोराने देखा, वहाँ कोई नहीं है । नौकरको बुलाकर पूछने पर उसने कहा बाबू ७८ नंबरके घरमें गये हैं। परेश बाबूके परिवार के विरुद्ध, ब्रह्म समाज के विरुद्ध, गोराका अंत:- करण एकदम विषाक्त हो उठा। वह अपने मनमे एक भारी विद्रोह का भाष लेकर परेश बाबूके घरकी तरफ तेजीसे चला । इच्छा थी कि वहाँ वह ऐसी सब बातें उठावेगा, जिन्हें सुनकर इस ब्रह्म-परिवारमं प्रागसी लग जायगी, और विनय भी वेचैन हो उठेगा। परेश बाबूके घर जाकर सुना, कोई घरमें नहीं है, सब उपासना- मन्दिरमें गये हैं । घड़ी भरके लिए मनमें संशवका उदय हुआ कि शायद विनय वहाँ नहीं गया--वह शायद इस समय उसीके घर गया हुअा है ! रहा नहीं गया । गोरा अपनो खानाविक आँधीको सी चालसे मन्दिर हो की ओर गया । द्वारके पास जाकर देखा, विनय बरदासुन्दरीके पीछे उन्होंकी गाड़ी पर चढ़ रहा है---खुली सड़कके बीच निर्लजकी तरह अन्य परिवार की औरतोंके साथ एक ही गाड़ी में जाकर बैठ रहा है ! --मूढ़ ! नागपाशमें इसी तरह अपने को फँसाना होता है ? इतनी जल्दी ! इतने सहजमें! तो फिर मित्रता अव भद्र पुरुषके साथ नहीं रही। गोरा आँधी की तरह वहाँसे चल दिया । और विनय, वह गाड़ी के अंधकार के भीतर सड़ककी ओर ताकता हुआ चुपका बैठ रहा ।