पृष्ठ:गोरा.pdf/९६

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[१५] रातको घरमें लौट भाकर गोरा अंधकारमें ही छत पर टहलने लगा। महिम छत पर आकर हाँफते हुए कहने लगे हाँ जी, विनयके पास गये थे? गोराने इसका स्पष्ट उत्तर न देकर कहा-~-विनयके साथ शशिनुखीका न्याहू न हो सकेगा। महिम क्यों, क्या विनयकी राय नहीं है ! गोरा-मेरी राय नहीं है। -महिमने हाथ उलटा कर कहा- खूब, यह तो और नया फँझट देख पड़ता है । तुम्हारी राय नहीं है क्यों ? कुछ कारण भी तो सुनू । गोरा-मैंने खूब समझ लिया है कि विनयको अपने समाज में रोक रखना हमें कठिन होगा। उसके साथ हमारे घरकी लड़की का ब्याह नहीं चल सकता। महिम-बहुत-बहुत कट्टर हिन्दू भी देखे हैं, किन्नु ऐसा और कहीं नहीं देखा । तुम भविष्य देख कर विधानको व्यवस्था देते हो। बहुत बक झक के बाद महिम ने कहा--तुम कुछ भी कहो, लड़कीको मैं किसी मूर्ख के हाथमे तो सौंप नहीं सकता। उसका व्याह बंद करके मेरी लड़की को क्यों अथाह में ढकेलते हो? तुम्हारे सभी उलटे विचार है। महिमने नीचे आकर आनन्दमयीसे कहा-माँ अपने गोराको तुम समझात्रो। आनन्दमयीने घबरा कर पूछा |--क्या हुना?