पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मालवा लोगों ने किसी तरह अप्रैल तक तो दिन काट लिए और तब यह तय किया कि वह, याकोव, अपने पिता के पास जाय, खेत वोने के बाद तीन महीने के लिए, जिससे पैसा पैदा कर सके । उन्होंने पिता को अपने इस निश्चय के बारे में लिख दिया था और तब उन्होंने तीन भेड़े बेचकर कुछ अनाज और घास मोल ली और .. .. ..... श्रव वह यहाँ था। ___"घच्छा, तो यह बात है, क्यों!" वासिली बोला-"ई"लेकिन यह कैसे हुआ ? मैंने तुम्हें कुछ रुपये भेजे थे, भेजे थे न ?" "वे ज्यादा नहीं थे, ज्यादा थे क्या ? हमने घर की मरम्मत कराई " .."मारिया की शादी की जिसमें हमें काफी खर्च करना पड़ा ......... " एक हल स्वरोदा ... क्यों, तुम्हें घर छोड़े हुए पांच साल हो गए हैं !" ____ "हा-आ-यां! यह बात तो है । रुपये काफी नहीं थे, तुम कहते हो ? " " ए ! शोरवा उफन रहा है !" यह कहते हुए वासिलो झोंपड़ी के वाहर भागा। श्राग के सामने, जिस पर शोरवा उवल रहा था, पालथी मार कर बैठते हुए वासिनी ने शून्य चित्त से शोरवे को चलाया और उसके माग को उतार कर आग में डाल दिया। वह गहरे विचारों में खो गया था । याकोव ने जो कुछ उससे कहा था उससे वह अधिक प्रभावित नहीं हुआ था लेकिन उसकी बातों ने उसके मन में अपनी स्त्री और बेटे के प्रति कठोरता के भाव उत्पन्न कर दिये थे । उन रुपयों के बावजूद भी जो उसने इन पांच वर्षों में भेजे थे उन्होंने खेतों को वर्वाद कर दिया था। अगर मालवा यहाँ न होती | वो वह याकोव को वता देता । बाप की विना इजाजत के यहाँ पाने की अक्ल तो उसमें आ गई परन्तु खेतों को ठीक तरह से रखने की अक्ल नहीं आई । वे खेत जिनके बारे में वासिली ने यहाँ की थानाद और आरामदेह जिन्दगी में रहते हुये बहुत कम सोचा था, अचानक उसके दिमाग में एक विना पेंदे के ऐसे गढ़े को शक्ल में उभर श्राए जिसमें वह पिछले पांच वर्षों से घरावर रुपये फेकता रहा था इस तरह जैसे वे फालतू, हॉ, जिनका उसकी जिन्दगी में कोई उपयोग न हो। उसने चम्मच से शोरवे को चलाया और गहरी सांस ली।