पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२०४

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भावारा प्रेमी २०७ आवश्यकता नहीं थी । वह बड़ी सावधानी के साथ खामा खाती मानो कि वह समोसे न खाकर मछली खा रही हो जो कॉटों से भरी हुई हो । और रह रह फर अपनी बड़ी बड़ी आँखें शारका की ओर घुमाती और उसके चंचल मुख दी मोर बड़ो विचित्रता से देखती जैसे कि यह अन्धो हो । कुत्ता खिडकी पर खड़ा हुमा यदी दीनता पूर्वक भोंकने लगा । फौजी बैंड से उत्पन्न सैनिक संगीत और सैकड़ों भारी पगों के सावधानी और रहता पूर्वक एक साथ जमीन पर पड़ने की ध्वनि सदक से पायु पर तैरती हुई अन्दर आ रही थी । स्तेपसा ने अपनी बदकी से कहा : " तुम पाहर दौड़कर सिपाहियों को क्यों नहीं देसी ? " " मुझे अच्छा नहीं लगता । " "यहुत सुन्दर ! " कुत्ते को समोसे का एक टुकड़ा फकते हुए गारका योता "मुझे अब कुछ नहीं चाहिए । " स्तेपखा ने उपको भोर मातृ स्नेह से देखा और अपनी छाती पर जाउज को कसते हुए गहरी साँस लेकर कहा " नहीं, यह सन्य नहीं है. अभी तुम्हें बहुत सी और चीजों की जरूरत है । " ____ " जो कुछ मैंने श्रमी कहा है यह पूर्ण सत्य है " शारका उत्तर देते हुए योला - " पर मुझे और कुछ भी नहीं चाहिये यदि पाशा मुझे अपनी प्रोसों से परेशान करना बन्द करदे । " " म तुम्हारीदिलपरवाह नहीं करती, " लएकी ने धीरे से कुद कर उत्तर दिया । उसकी माँ ने गुस्से से टमको प्रोर देवा परन्तु कहा का नहीं । शारका अपनी कुर्सी पर बैठने में येचैनी मो अनुभव करते हुए परेशान होर लरकी की घोर देय कर गुस्से मे बोला : " मुझे ऐमा अनुनय होता है जैसे मेरी प्राामा में कही कर ममार है । इसलिए मेरे ईरवर ! मेरी सहायता कर । मैं चाहता हूं कि मेरो