पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१२०

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गोल-सभा ने अपनी उन बातों को दुहराया है, जिनको उन्होंने एसेंबली के भाषण में कहा था। पत्र में कुछ इस प्रकार के शब्दों की भर- मार है, जिनका कोई एक अर्थ नहीं होता। उन दुटप्पी बातों का कोई भी जब जो चाहे, मतलब निकाल सकता है। हमने अपने पत्र में यह साफ कर दिया था कि भारत में यथासंभव शीघ्र एक ऐसी पूर्ण स्वतंत्र शासन की व्यवस्था हो, जो भारतवासियों के सामने उत्तरदायी हो । देश की सेनाओं और आर्थिक प्रश्नों पर इस नवीन सरकार का पूरा-पूरा अधिकार होगा। हमारे सामने न तो किसी प्रकार की देरी का प्रश्न है, और न उसमें किसी प्रकार के संशोधन की गुंजाइश है । ब्रिटिश सरकार के हाथ से नई सरकार के हाथ में अधिकार आने में कुछ विशेष व्यवस्था की आवश्यकता पड़ेगी । उस व्यवस्था का भारत के निर्वाचित प्रतिनिधि निर्णय करेंगे। इसके अतिरिक्त एक बात यह भी होगी कि भारत जब चाहेगा, अपनी इच्छा और आवश्यकता पर ब्रिटिश साम्राज्य से अलग हो जायगा । उसे यह भी अधिकार होगा कि अपने उस आर्थिक प्रश्न का, जो उसके ऊपर ऋण के रूप में दिखाया जाता है, एक स्वतंत्र कमेटी के द्वारा निर्णय करा सके ! इन सब बातों के संबंध में हमसे केवल यह कहा जाता है कि गोल-सभा बिल्कुल स्वतंत्र होगी, वहाँ पर अपनी इच्छा के अनुसार प्रतिनिधि लोग प्रश्न उठा सकेंगे। ये तो वही बातें हैं, जो पहले कही जा चुकी हैं । इसमें नई बातें क्या