पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गोल-सभा आधार-रूप नियमों के अनुसार ऐसा होना अनिवार्य था। प्रत्येक हिंदू तथा मुसलमान इस बात को समझ सकता है।" प्रधान मंत्री के इस भाषण पर 'मान्चेस्टर गार्डियन्' ने लिखाः था कि "बड़े योरपियन युद्ध के पश्चात् अँगरेजी नीति भारत के संबंध में की गई इस आशय की घोषणाओं के अनुकूल चली आई है कि भारत को धीरे-धीरे साम्राज्य के भीतर पूर्ण स्वराज्य दे दिया जायगा । इतने काल में जो घटनाएँ हुई हैं, उनके आधार पर भारतवासियों की पूरा लेंगे या कुछ नहीं लेंगे' वाली माँग और अँगरेजों की धीरे-धीरे देने की नीति में विरोध होता आया है। इस विरोध का अंत भारतीय राजों ने एक फेडरेशन में सम्मिलित हो जाने की तत्परता दिखलाकर समाप्त कर दिया। इस संबंध में अपने-अपने अधिकारों की खींचा-तानी होना जरूरी है। किंतु यह ऐसी नहीं हो सकती कि जिनको हल न किया जा सके।" 'डेली हेरल्ड' ने लिखा था-भारतवासियों की मांग तो प्रत्यक्ष और साफ है । अब कमेटी का यह कर्तव्य है कि वह इस मांग को सामने रखकर भारत को पूर्ण स्वराज्य देने की स्कीम पर विचार करे। यह है तो कठिन ही, पर असंभव नहीं।" २२ नवंबर को सर एम्० विश्वेश्वर अय्यर ( भूतपूर्व दीवान मैसूर ), मि० नटरंजन (संपादक इंडियन सोशल रिफ़ार्मर) तथा अन्य कुछ सज्जनों ने मिलकर एक स्कीम तैयार की, जिसमें भारतवासियों की ओर से कम-से-कम मांग उपस्थित की। यह स्कीम गोल-सभा के प्रतिनिधियों को भेज दी गई थी।