पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/५१

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चौथा अध्याय और औसत का भाव बहुत है ; परंतु विश्वास और उदारता से ही भय दूर हो सकते हैं। "वह समय आ गया है, जब हमें स्वराज्य-योजना को एक ओर रखकर स्वतंत्र भावासे अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए, और पूर्ण स्वाधीनता की घोषणा कर देनी चाहिए । हमारे राष्ट्रीय और श्रमजीवी नेताओं का बुरी तरह दमन किया जा रहा है, और जबर्दस्ती हमारे साथी कैद कर लिए गए हैं। बहुतों को स्वदेश नहीं लौटने दिया जाता। सरकारी सेना अपने कौलादी पंजे में देश को जकड़े हुए है, और हममें से जो सिर उठाता है, उसी पर चाबुक पड़ता है। "वाइसराय ने समझौता-सभा की घोषणा को है, जिसमें भार- तीय नेता निमंत्रित किए जायेंगे। पर हमें ब्रिटिश-राजनोति की दुरंगी चाल का पूरा अनुभव हो गया है। "इस घोषणा के बाद ही दिल्ली में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने एकत्र होकर यह स्पष्ट कर दिया था कि किन शतों पर वह घोषणा स्वीकार की जा सकती है। पोछे की व्याख्या से उक्त घोषणा का महत्त्व प्रकट हो गया है । अभी जो बहस पार्लियामेंट की साधारण सभा में, भारत के बारे में, छिड़ी है, और भारत-मंत्री ने अपनी सरकार की नीयत साफ होने की बात कही है, वह हो सकती है । पर उससे हमें कुछ आशा नहीं। भारत को हानि पहुँचाकर इंगलैंड तो लाभ उठा ही रहा है । "पिछले दस सालों में सरकार ने भारत की भलाई के लिये