पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१५४

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3 गोस्वामी तुलसीदास लमान कवि, और तीसरे केवल वंशीवट और यमुना-तट तक रखनेवाले पद गानेवाले कृष्णभक्त कवि। इनमें से किसी की विश्वविस्तृत नहीं थी। भक्ति-मार्ग के संबंध से तुलसीदासजी सान्निध्य सूरदास आदि तीसरे वर्ग के कवियों से ही अधिक पर उक्त वर्ग में सबसे श्रेष्ठ कवि जो सूरदासजी हैं, उन्होंने थलों और ऋतुओं आदि का जो कुछ वर्णन किया है, वह एक .. भाव के उद्दीपन की दृष्टि से । वर्णन की शैली भी उनकी वही ले खेवे के कवियों की है जिसमें गिनाई हुई वस्तुओं का उल्लेख अलंकारों से लदा हुआ होता है। ऐसी अवस्था में भी गोस्वामीजी तेखनी से जो कहीं कहीं प्राचीन कवियों के अनुरूप संश्लिष्ट ए हुआ है, वह उनके हृदय का स्वाभाविक विस्तार प्रकट करता र उन्हें हिंदी के कवियों में सबसे ऊँचे ले जाता है पर गोस्वामीजी के अधिकांश वर्णन पिछले कवियों के ढंग पर सौंदर्य-प्रधान ही हैं जिनमें वस्तुओं का परिगणन मात्र से- मरना मरहिं सुधा-सम बारी । त्रिविध ताप-हर त्रिविध बयारी ॥ बेलि • तृन अगनित जाती । फल-प्रसून-पल्लव बहु र्भाती ॥ सिला सुखद तरु-छाहीं । जाइ बरनि बन-छवि केहि पाहीं॥ सरनि सरोरुह जल-बिहग कूजत, गुजत भंग । बैर-बिगत बिहरत बिपिन मृग बिहंग बहुरंग ॥ ३) बिटप बेलि नव किसलय, कुसुमित सघन सुजाति । कंद-मूल जल-थल-रुह अगनित अनबन भांति ।। मंजुल मंजु, बकुल-कुल, सुर-तरु, ताल-तमाल । कदलि कदंब सुचंपक पाटल, पनस रसाल । सरित-सरन सरसीरुह फूले 'जत मंजु मधुपगन कूजत बिबिध बिहंग ।। नाना