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१३४ गोदान

होरी ने डाँटा––चुप रह, बहुत चढ़-चढ़ न बोल। बिरादरी के चक्कर में अभी पड़ी नहीं है, नहीं मुंह से बात न निकलती।

धनिया उत्तेजित हो गयी-कौन-सा पाप किया है, जिसके लिए बिरादरी से डरें, किसी की चोरी की है, किसी का माल काटा है? मेहरिया रख लेना पाप नही है, हाँ, रख के छोड़ देना पाप है। आदमी का बहुत सीधा होना भी बुरा है। उसके सीधेपन का फल यही होता है कि कुत्ते भी मुँह चाटने लगते हैं। आज उधर तुम्हारी वाह-वाह हो रही होगी कि बिरादरी की कैसी मरजाद रख ली। मेरे भाग फूट गये थे कि तुम जैसे मर्द से पाला पड़ा। कभी मुख की रोटी न मिली।

'मैं तेरे बाप के पाँव पड़ने गया था? वही तुझे मेरे गले बाँध गया।'

'पत्थर पड़ गया था उनकी अक्कल पर और उन्हें क्या कहूँ। न जाने क्या देखकर लट्टू हो गये। ऐसे कोई बड़े सुन्दर भी तो न थे तुम।'

विवाद विनोद के क्षेत्र में आ गया। अस्सी रुपाए गये तो गये, लाख रुपए का बालक तो मिल गया! उसे तो कोई न छीन लेगा। गोबर घर लौट आये, धनिया अलग झोंपड़ी में भी सुखी रहेगी।

होरी ने पूछा––बच्चा किसको पड़ा है?

धनिया ने प्रसन्नमुख होकर जवाब दिया––बिलकुल गोबर को पड़ा है। सच!

'रिस्ट-पुष्ट तो है?'

'हाँ, अच्छा है।'


१२

रात को गोबर झुनिया के साथ चला, तो ऐसा काँप रहा था, जैसे उसकी नाक कटी हुई हो। झुनिया को देखते ही सारे गांव में कुहराम मच जायगा, लोग चारों ओर से कैसी हाय-हाय मचायेंगे, धनिया कितनी गालियाँ देगी, यह सोच-सोचकर उसके पाँव पीछे रहे जाते थे। होरी का तो उसे भय न था। वह केवल एक बार धाड़ेगे, फिर शान्त हो जायंगे। डर था धनिया का, जहर खाने लगेगी, घर में आग लगाने लगेगी। नही, इस वक्त वह झुनिया के साथ घर नहीं जा सकता।

लेकिन कही धनिया ने झुनिया को घर में घुसने ही न दिया और झाड़ू लेकर मारने दौड़ी, तो वह बेचारी कहाँ जायगी। अपने घर तो लौट ही नहो सकती। कहीं कुएँ में कूद पड़े या गले में फांसी लगा ले, तो क्या हो। उसने लम्बी साँस ली। किसकी शरण ले।

मगर अम्माँ इतनी निर्दयी नहीं है कि मारने दौड़ें। क्रोध में दो-चार गालियाँ देंगी! लेकिन जब झुनिया उसके पाँव पड़कर रोने लगेगी, तो उन्हें ज़रूर दया आ जायगी। तब तक वह खुद कहीं छिपा रहेगा। जव उपद्रव शान्त हो जायगा, तब वह एक दिन धीरे से आयेगा और अम्माँ को मना लेगा, अगर इम बीच में उसे कहीं मजूरी मिल जाय और दो-चार रुपए लेकर घर लौटे, तो फिर धनिया का मुँह बन्द हो जायगा।

झुनिया बोली––मेरी छाती धक्-धक् कर रही है। मैं क्या जानती थी, तुम मेरे