पृष्ठ:गो-दान.djvu/१८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८६
गो-दान
 


उधार न दे;लेकिन पैसावाले उधार न दें तो सूद कहाँ से पायें। एक हमारे ऊपर दावा करता है,तो दूसरा हमें कुछ कम सूद पर रुपए उधार देकर अपने जाल में फंसा लेता है। मैं तो उसी दिन रुपये लेने जाऊँगा,जिस दिन झिंगुरी कहीं चला गया होगा।

होरी का मन भी विचलित हुआ-हाँ,यह ठीक है।

'ऊख तुलवा देंगे। रुपए दाँव-धात देखकर ले आयेंगे।'

'बस-बस,यही चाल चलो।'

दूसरे दिन प्रातःकाल गाँव के कई आदमियों ने ऊख काटनी शुरू की। होरी भी अपने खेत में गँडासा लेकर पहुंचा। उधर से शोभा भी उसकी मदद को आ गया। पुनिया,झुनिया, धनिया,सोना सभी खेत में जा पहुँचीं। कोई ऊख काटता था, कोई छोलता था,कोई पूले वाँधता था। महाजनों ने जो ऊख कटते देखी,तो पेट में चूहे दौड़े। एक तरफ से दुलारी दौड़ी,दूसरी तरफ से मँगरू साह,तीसरी ओर से मातादीन और पटेश्वरी और झिगुरी के पियादे। दुलारी हाथ-पाँव में मोटे-मोटे चाँदी के कड़े पहने,कानों में सोने का झूमक,आँखों में काजल लगाये,बूढ़े यौवन को रँगे-रँगाये आकर बोलीपहले मेरे रुपये दे दो तब ऊख काटने दूंगी। मैं जितना ही गम खाती हूँ,उतना ही तुम शेर होते हो। दो साल से एक धेला सूद नहीं दिया,पचास तो मेरे सूद के होते हैं।

होरी ने घिघियाकर कहा--भाभी,ऊख काट लेने दो, इनके रुपये मिलते हैं,तो जितना हो सकेगा,तुमको भी दूंगा। न गाँव छोड़कर भागा जाता हूँ,न इतनी जल्द मौत ही आयी जाती है। खेत में खड़ी ऊख तो रुपये न देगी?

दुलारी ने उसके हाथ से गँडासा छीनकर कहा-नीयत इतनी खराब हो गयी है तुम लोगों की,तभी तो वरक्कत नहीं होती।

आज पाँच साल हुए,होरी ने दुलारी से तीस रुपये लिये थे,तीन साल में उसके सौ रुपये हो गये,तव स्टाम्प लिखा गया। दो साल में उस पर पचास रुपया सूद चढ़ गया था।

होरी बोला--सहुआइन,नीयत तो कभी खराव नहीं की,और भगवान् चाहेंगे,तो पाई-पाई चुका दूंगा। हाँ,आजकल तंग हो गया हूँ,जो चाहे कह लो।

सहुआइन को जाते देर नहीं हुई कि मॅगरू साह पहुँचे। काला रंग,तोंद कमर के नीचे लटकती हुई,दो बड़े-बड़े दाँत सामने जैसे काट खाने को निकले हुए,सिर पर टोपी,गले में चादर,उम्र अभी पचास से ज्यादा नहीं;पर लाठी के सहारे चलते थे। गठिया का मरज़ हो गया था। खाँसी भी आती थी। लाठी टेककर खड़े हो गये और होरी को डाँट बतायी-पहले हमारे रुपये दे दो होरी,तब ऊख काटो। हमने रुपये उधार दिये थे, खैरात नहीं थे। तीन-तीन साल हो गये,न सूद न ब्याज;मगर यह न समझना कि तुम मेरे रुपये हज़म कर जाओगे। मैं तुम्हारे मुर्दे से भी वसूल कर लूंगा।

शोभा मसखरा था। बोला-तब काहे को घवड़ाते हो साहजी,इनके मुर्दे ही से वसूल कर लेना। नहीं,एक दो साल के आगे पीछे दोनों ही सरग में पहुँचोगे। वहीं भगवान के सामने अपना हिसाब चुका लेना।