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गो-दान
२४३
 


खन्ना को प्रसन्न कर देगी। उसका सम्मान तो उसके पति ही का सम्मान है। खन्ना को इसमें कोई आपत्ति हो सकती है,इसकी उसने कल्पना भी न की थी। इधर कई दिन से पति को कुछ सदय देखकर उसका मन बढ़ने लगा था। वह अपने भाषण से, और अपनी कविता से लोगों को मुग्ध कर देने का स्वप्न देख रही थी।

यह प्रश्न सुना और खन्ना की मुद्रा देखी,तो उसकी छाती धक-धक् करने लगी। अपराधी की भाँति बोली-डाक्टर मेहता ने आग्रह किया,तो मैंने स्वीकार कर लिया।

'डाक्टर मेहता तुम्हें कुएँ में गिरने को कहें,तो शायद इतनी खुशी से न तैयार होगी।'

गोविन्दी की ज़बान बन्द।

'तुम्हें जब ईश्वर ने बुद्धि नहीं दी, तो क्यों मुझसे नहीं पूछ लिया? मेहता और मालती,दोनों यह चाल चलकर मुझसे दो-चार हज़ार ऐंठने की फ्रिक में हैं। और मैंने ठान लिया है कि कौड़ी भी न दूंगा। तुम आज ही मेहता को इनकारी खत लिख दो।'

गोविन्दी ने एक क्षण सोचकर कहा-तो तुम्हीं लिख दो न।

'मैं क्यों लिखू? बात की तुमने,लिखू मैं!'

'डाक्टर साहब कारण पूछेगे,तो क्या बताऊँगी?'

'बताना अपना सिर और क्या। मैं इस व्यभिचारशाला को एक धेली भी नहीं देना चाहता।'

'तो तुम्हें देने को कौन कहता है?'

खन्ना ने होंठ चबाकर कहा-कैसी बेसमझी की-सी बातें करती हो? तुम वहाँ नींव रखोगी और कुछ दोगी नहीं,तो संसार क्या कहेगा?

गोविन्दी ने जैसे संगीन की नोक पर कहा-अच्छी बात है,लिख दूंगी।

'आज ही लिखना होगा।'

'कह तो दिया लिखूगी।'

खन्ना बाहर आये और डाक देखने लगे। उन्हें दफ्तर जाने में देर हो जाती थी तो चपरासी घर पर ही डाक दे जाता था। शक्कर तेज़ हो गयी। खन्ना का चेहरा खिल उठा। दूसरी चिट्ठी खोली। ऊख की दर नियत करने के लिए जो कमेटी बैठी थी, उसने तय कर लिया कि ऐसा नियंत्रण नहीं किया जा सकता। धत् तेरी की! वह पहले यही बात कह रहे थे;पर इस अग्निहोत्री ने गुल मचाकर जबरदस्ती कमेटी बैठाई। आखिर बचा के मुंह पर थप्पड़ लगा। यह मिलवालों और किसानों के बीच का मुआमला है। सरकार इसमें दखल देनेवाली कौन?

सहसा मिस मालती कार से उतरी। कमल की भाँति खिली,दीपक की भाँति दमकती,स्फूर्ति और उल्लास की प्रतिमा-सी-निश्शंक,निर्द्वन्द्व मानों उसे विश्वास है कि संसार में उसके लिए आदर और सुख का द्वार खुला हुआ है। खन्ना ने बरामदे में आकर अभिवादन किया।

मालती ने पूछा-क्या यहाँ मेहता आये थे?