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गोदान
 

युवती न दीन नेत्रों से मेहता को देखा। इतनी मेहनत से बूटी लायी,उसका यह अनादर। इस गॅवारिन की दवा इन्हें नहीं अँची,तो न सही,उसका मन रखने को ही ज़रा-सी लगवा लेतीं,तो क्या होता।

उसने बूटी ज़मीन पर रखकर पूछा--तब तक तो चूल्हा ठण्ढा हो जायगा बाईजी। कहो तो रोटियां सेंककर रख दूंँ। बाबूजी खाना खा लें,तुम दूध पी लो और दोनों जने आराम करो। तब तक मैं मोटरवाले को बुला लाऊँगी।

वह झोपड़ी में गयी,बुझी हुई आग फिर जलायी। देखा तो माँस उबल गया था। कुछ जल भी गया था। जल्दी-जल्दी रोटियाँ सेंकी,दूध गर्म था,उसे ठण्ढा किया और एक कटोरे में मालती के पास लायी। मालती ने कटोरे के भद्देपन पर मुंँह बनाया;लेकिन दूध त्याग न सकी। मेहता झोपड़ी के द्वार पर बैठकर एक थाली में मांँस और रोटियाँ खाने लगे। युवती खड़ी पंखा झल रही थी।

मालती ने युवती से कहा--उन्हें खाने दो। कहीं भागे नहीं जाते हैं। तू जाकर गाड़ी ला।

युवती ने मालती की ओर एक बार सवाल की आँखों से देखा,यह क्या चाहती हैं। इनका आशय क्या है? उसे मालती के चेहरे पर रोगियों की-सी नम्रता और कृतज्ञता और याचना न दिखायी दी। उसकी जगह अभिमान और प्रमाद की झलक थी। गॅवारिन मनोभावों के पहचानने में चतुर थी। बोली--मैं किसी की लौडी नहीं हूँ बाईजी! तुम बड़ी हो,अपने घर की बड़ी हो। मैं तुमसे कुछ माँगने तो नहीं जाती। मैं गाड़ी लेने न जाऊँगी।

मालती ने डाँटा–-अच्छा, तूने गुस्ताखी पर कमर बाँधी! बता तू किसके इलाके मे रहती है?

'यह राय साहब का इलाका है।'

'तो तुझे उन्हीं राय साहब के हाथों हंटरों से पिटवाऊँगी।'

'मुझे पिटवाने से तुम्हें सुख मिले तो पिटवा लेना बाईजी!कोई रानी-महारानी थोड़ी हूँ कि लस्कर भेजनी पड़ेगी।'

मेहता ने दो-चार कौर निगले थे कि मालती की यह बातें सुनीं। कौर कण्ठ में अटक गया। जल्दी से हाथ धोया और बोले--वह नहीं जायगी। मै जा रहा हूँ।

मालती भी खड़ी हो गयी--उसे जाना पड़ेगा।

मेहता ने अंग्रेजी में कहा--उसका अपमान करके तुम अपना सम्मान बढ़ा नही रही हो मालती!

मालती ने फटकार बतायी--ऐसी ही लौंडियाँ मर्दो को पसन्द आती हैं,जिनमें और कोई गुण हो या न हो,उनकी टहल दौड़-दौड़कर प्रसन्न मन से करें और अपना भाग्य सराहें कि इस पुरुष ने मुझसे यह काम करने को तो कहा। वह देवियाँ हैं, शक्तियाँ हैं,विभूतियाँ हैं। मैं समझती थी,वह पुरुषत्व तुममें कम-से-कम नहीं है। लेकिन अन्दर से,संस्कारों से,तुम भी वही बर्वर हो।