पृष्ठ:चंदायन.djvu/१००

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२६ (रीलैण्ड्स ७) सिपत खल्के दशहर बन सकना बूदन्द दरऔं शहरे मज्वर (उस मगरके निवासियोंका वर्णन) बॉभन सतरी वसहिं गुवारा । गहरवार औ आगरवारा ॥१ वसहिं तिवारी औ पचवानॉ । घागर चूनी औ हजमानॉ ॥२ वसहिं गॅधाई औ बनजारा । जात सरावग औ बनवारा ॥३ सोनी यसहिं सुनार पिनानी । राउत लोग बिसाती आनी ॥४ ठाकुर बहुत पसहिं चौहानॉ । परजा पानि गिनति को जाना ॥५ बहुत जात दरमर अथह, खोरहि हीड न जाइ।६ तैस वा देस गोचर, मानुस चलत भुलाइ ॥७ टिप्पणी-(१) याँभन-ग्राह्मण । खतर-सत्री अथवा क्षनिय । गुपारा-ग्याल, अहीर | गहरवार-गहडवाल, राजपूतोंका एक वर्ग। आगरधारा- अग्रवाल, वैश्योंका एक प्रमुख वर्ग। (२) तिवारी–त्रिपाठी, ब्राहाणोंका एक वर्ग । पचवाना-पचम वर्ण । धागर-निम्न वर्गकी एक जाति, जिनकी स्त्रियाँ जन्मय अवसरपर शिशुषे नाल काटने और सूतिका गृहपे अन्य काम करती थीं। हजमाना-हजाम, नाई। (३) गॅधाई-गन्धी, तेल सुगन्धितमा काम करनेवाले । पनजारा- (स० वाणिज्यवारण>चाणिज्यारक) व्यापारी, यह सार्थवाह शब्दका मध्यकालीन पर्यायवाची था और इसका प्रयोग उन व्यापारियों के लिए किया जाता था जो टाँड लद पर ( सामूहिक रूपसे माल लद पर) दूर देशोंरो व्यापार करने आया करते थे। सरावग-(स० श्रावर ) जैन धर्मावलम्बी गृहस्थ । पनवारा- वाल, वैश्योपी एक जाति, पनवारा पाठ भी सम्मथ । उस समय इसरा अर्थ होगा-पानवाला, रई। (४) सोनी-सोनेया काम करनेवारे। बिनानी-विज्ञानी । राउन- (स-राजपुत्र>गउत्त>राउत्त>राउत) राजपूतोका वर्ग विशेष, मूल्त यह राजपशोसे सम्बन्ध रखनेवाले लोगोंकी उपाधि था। पिसाती-परी ल्गार पेचनेवाले व्यापारी।