पृष्ठ:चंदायन.djvu/१०२

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है । यह कोई सौन्दर्य-योधक विशेषण है । जिसका भाव और अर्थ हमे हर नहीं हो रहा है । शिवसहार पाठकका सुझाव है कि 'मपर पा तात्पर्य 'मरा से है और रूप मरार का भाव है 'मयूरसे समान मुन्दर'। (४) कापर-कपडा । घोर-घोडा। (५) खरग-सद्ग, तवार । (६) भूनहि-भोग घरे । सामन (सक शासन)-राजाशा अति तान पर । सासन गाँउ-राज्यादेशसे प्रात ग्राम । (रोटेण्ड्स ९) सिफ्त पाजार इत्रियात शहरे गोवर व सरीदने सल्क (गोवर नगरके सुगन्धिके दानार तथा यहाँकी खरीदारीका वर्गन) सुनो फूल हाट सर फूला । जीउ दिमोह गा देखत भूला ॥१ अगर चन्दन सर धरा बिकाने । कुंकुं परिमल सुगंधि गंधाने ॥२ वेनॉ और केवर सुहाया । मोल किये पिर'] महक (सुधागा) ॥३ पान नगरसण्ड सुरंग सुपारी । जैफर लोंग रिकारी झारी ॥४ दोनों मरवा बुन्द निगरी । गूदड हार ते देचहिं नारी ॥५ खॉड चिरोंजी दास खुरहुरी, बैठे लोग निसाह ।६ हीर पटोर सो भल कापड, जित चाहे सर आह ॥७ मूलपाठ-(३) सुनाया। टिप्पणी-(२) धरा-धग, पाँच सेरका तौल 1 कुक्-सर । परिमर-कई भुग धियोंको मिलाकर बनाई हुई विशेष वास (पामुदेवशरण अग्रवाल)। (३) बेना-धीरण, सस । केयर-वेवडा । (४) जैफर जायफल । (५) दाँ-तुल्सीका जातिका पौधा जिसकी पचियोंमें सुगधि होती है । मरवा-(स) मरवर) मह पाल्गुन-चैत्रमें पूरुवा है। इसके पूल लाल और सफेद दो रगोंये होते हैं। कुम्द-सोद रंगा छोटा पूल जो अगहन-समें पूलता है। नेवारी-इसे निवाडी भी रहते हैं। यह चैवम पलनेवाल सफेद पल है । आइने अकवरीमें इसे एक पत्तेका पल रहा गया है। यह रायलासे मिलता जुल्ता है । इस पूल इतने अधिक आते हैं कि पेड दर गता है।