पृष्ठ:चंदायन.djvu/१०६

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पाटमहादेवि फलारानी । सौ अचेत वह अहै सयानी ॥३ अगर चॅदन फूल औ पाने । कु. सेंदुर परसहि आनें ॥४ रचै हिंडोला इलें नारी । गावहिं अपुरुष जोबनवारी ॥५ अरथ दरय घोर औ हति, गिनत न आयइ काउ १६ अन-धन पाट-पटोर भल, कौतुक भूला राउ ॥७ टिप्पणी--(१) तर-नीचे, आधीन । चेरि–दासी । भासी-अप्सरा । (२) घेकर बेकर-अलग-अलग तरह तरहले। उनारा--(प्रा. जेमणकार) भोजन, रसोई। (५) जोपनवारी-योदनवाला, युक्ती । (६) दरव-द्रव्य; हति-हायी। पार-हमे इस शब्दका प्रयोग रिसा पूर्ववती साहित्यमे नहीं मिला। समस्ती साहित्यमें मी देवल नरपति नाल्ह पृत वीसलदेव राससमें इसका उल्लेख 'पाट-पटम्बर के रूपमे है । परवर्ती साहित्यमें पदमा- वत एक स्थानपर इसका उल्लेख है ( २११६)। रुम्भवतः यह दान्द सस्कृत पट या पट्टने निकला है। ग्यारहवीं शती वैजन्ती कोष ( १६८।२३१) और बारहवीं शतीके अभिधान चिन्तामणि कोष ( ३१६६६-६७)के अनुसार पट वस्त्रकी सामान्य संशा मान पडती है । अभिधानमें पुराने कपडे के लिए परचर शन्द है ( ३॥ ६७८)। दसवीं पातीके प्रारम्भमें लिखे गये निविक्रमभट व नलचम्पूमें दमयन्तीकी माताको सम्बोधित करते हुए कालापा गम है कि-इन चीनाशुक पाको स्वीकार करें जो अनवम् (अग्नि द्वारा स्वच्छ किये जानेवाले) है। पतः यहाँ चीनके भने अभ्रफफे वस्त्रोंसे तात्पर्य है। इससे भी यही रूगता है कि पट सामान्य रूपसे वस्त्रको रहते थे। इसके विपरीत अनेक ऐसे भी उल्लेख मात होते हैं, जिनसे जान पड़ता है कि पट रिती विशेष प्रकार, सन्मदतः दामो वो कहते थे। पश्चिमी चालुक्य नरेश सोमेश्वर (११२४- ११३८ ई.) ने अपने मानसोल्लासमै चित्रित वारे विविध सूनोंका उस्लेख किया है, उसमें पांत (यपास, रूई), कौम (सन पाट आदि पोदीने निराले जानेवाले सूत), रोम ( ऊन) साप साथ पस्नका भी उल्लेख किया है, जो प्रसंगरे अनुसार सगी सुत अनुमान दिया जा सकता है। कल्हणके राजतरंगिकी में एक स्थानपर इस पातमा उल्लेख है कि श्रीनगरसे राहतूल (साराम्ला) जानेवाले मार्ग स्थित पटन (आधुनिक पटन) पयानम् (दी