पृष्ठ:चंदायन.djvu/१०७

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बुनाई )रे लिए प्रसिद्ध था। इससे भी प्रस्ट होता है कि पट्ट रेशम को कहते थे । ज्योतिरीश्वर टस्हर (चौदहवी दाती)ने वर्णरनाक्रम वस्त्रोंकी तीन गुचियाँ दी है । एक सूची तो सूती वस्त्राको है । दूसरी दो सूचियोंरे विषय है-पटम्बर जाति वम्र और देशी पट्ट। इनसे भी स्पष्ट है कि पट सूती वस्त्रोंसे भिन वसको कहते थे। पाटके अन्तर्गत पट्ट विरा अर्थको ग्रहण किया गया है, यह निश्चित स्पसे कहना कठिन है । पाट कदाचित उन रेदामी वस्त्रोसे कहते रहे हो, जिन्द प्योतिरीश्वरने देशी पह-यन्त्र यहा है। किन्तु लोक में प्रचलित व्यवसाय बोधक जाति सशा पटुआ और परहरा इस ओर सरेत करते है कि लोकम पाट सुती यरूको सज्ञा रूपम ही ग्रहण दिया गया रहा होगा । प्रस्तुत प्रमग भी दसीका समर्थन करता जान पडता है। पटोर-पटोल अथवा पटोला नामा वस्त्र जाज भी गुजरातम काफी प्रसिद्ध है । वहाँ ऐसे वस्त्रो पटोल कहते है जिसके सूनको बुननमे पूर्व ही, निश्चिन डिजाइनरे अनुसार बाँधन पद्धतिसे रग लिया जाता है। चौदहवीं शतीम वहाँ इसका प्रचार साडीके रूपम काफी हो गया था, ऐसा वहाँके प्राचीन पागुआको देसनेसे जान पड़ता है (प्राचीन पागु सग्रह, ४१३९, ६.१)। वर्णनॊमें इसका उल्लेस पटोल, पटुला, पटुली आदि नामोसे हुआ है (वर्णक समुच्चय, १८१) । इतिहासकार जियाउद्दीन बारनीने भी पटोलगाया उल्लेख अलाउद्दीन पिलजीको देवगिरिसे प्राप्त वस्तुओंमें किया है (पृ० ३२३) । पटोलका प्राचीनतम उल्लेस सोमदेवरे यद्यस्तिलक चम्पम मिलता है। वहाँ उसकी गणना " पलवस्त्राणि" अन्तर्गत हुई है (पृ० ३६८)। बारहवीं शती मेदिनी कोषम पटोलको रेशमी वस्त्र बताया गया है ( १८७।१६६ ) । पटोरका उरलेख वर्ण- रखाकारमें पहली बार हुआ है। प्योतिरीश्वर टम्मुरने उसे देशी पट्टयों के अन्तर्गत रखा है। नरपति नारहने बीसलदेव रासोम पाट पटम्बरका उरलेख किया है जो पाट पटोरमा समानार्थी जान पडता है । इसके अनुसार पटोर पटम्बरका ही पर्याय ठहरता है। “इस प्रकार जान पटता है कि पटोर रेशमी घस्नरी रोक प्रचलित सामान्य सशा थी । पाट-पटोर--उपर्युक्त विवेचमये पश्चात हमारी धारणा है कि पाट सती और पोर रेशमी वस्त्रयो कहते थे और पाट पटोर योर चाल्मे वस्त्र के लिए सामान्य ढगसे प्रयोग होता था।