पृष्ठ:चंदायन.djvu/१०८

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(रीरैण्ड्स ११) तबल्टद शुदने चॉदा दर सान ए महर व खिदमते क्दने हमाँ सितारगान (महरके घर चाँदाका जन्म और ज्योतिषियोंकी भविष्यवाणी) सहदेव मंदिर चॉद औतारी । धरती सरग भई उजियारी ॥१ भले घरै भयउ औतारू । दूज क चॉद जान सपॅसारू ॥२ सातो चॅदर नसत भा मॉगा । जानों सूर दिपै जिंह ऑगा ॥३ भये सपूरन चौदस राती । चॉद महरधी पदुमिनि जाती ॥४ राहु केतु दोइ सेउ गराहैं । सूक सनीचर वहिरै चाहै ॥५ और नसर अरकाउँ, आउँहि पॅवर दुआर ॥ चॉद चलत नर मोहहिं, जगत भयउ उजियार ॥७ टिप्पणी-(८) सेउ-रावा, अधिक, बडे । गराई-ग्रह । सेउ कराहें भी पदा जा सकता है। उस अपस्था में अर्थ होगा--सेवा करते है । (बीकानेर प्रतिके प्रकाशित पाठ से) चॉद सुरुज तेहि निरमरा, सहदेव गिनी जुवारि ॥६ गन गंधर्व रिसि देवता, देसि विमोहे नारि ॥७ टिप्पणी-(७) गन गंधर्व-गन्धर्व रामह । यह पूरी पत्ति ९३वे पडवरम भी है। ३५ (रीटेड्स १५) रोजे पशुम शदामी शये ज्याफ्ते ग्यान्दा वरदन व दीदन जुन्नारदारों ताले (पाँचवें दिन रानिमें भोज और ब्राह्मणीका कुण्डली देखना) पाँचों दिवस छठी भइ राती । निउता गोवर छतीसो जाती ॥१ घर घर सभ कर निउता आवा | औ सिंह ऊपर वाज बधावा ॥२ महरै सहस सात एक आये | अंग मृड़ सेंदुर अन्हवाये ॥३ बॉभन सभा आइ जो बईठी । काढ़ि पुरान रासि गुन दीठी ॥४ छटी का आसर देखि लिलारा । अरु दहि सों जाइ जियाय ॥५