पृष्ठ:चंदायन.djvu/१११

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१०१ जात परम गुनागर, देस मान सम लोग।६ मुन बोल जीतइँ दीजइ, बेटी पावन जोग ।।७ टिप्पणी-(१) सिंहयारू-सिहदार, प्रवेशद्वार । कित-कहाँ, कैसे। (२) औहट-ओट, सहारा; यहाँ तात्पर्य आसनसे है। औधारी--अब- धारण> औधारन> औषार, रसना, बैठना। पावा-लीजिये। औइट लहि औधारी पावा-आसन लेकर बैठिये, आसन ग्रहण कीजिये। (३) वितन्ते वृतान्त, अभिप्राय । (४) हो-वह भी । आर-है। नीके-अन्छ । (रीलैण्डम :१) जगाव दादने नरमन व हवाम रा अज ताले चॉदा व पावन (यावन और चाँदाको जन्मकुण्डली देखकर ब्राह्मण और नाईको उत्तर) सुन साधो तू पंडित सयाना । गुनितकार कस होत अयानाँ ॥१ छठ आ गसे जड़ रासी । परी धरसु भी गुनत भुलासी ॥२ अस फुनि असकतकरी नजाई । पाछे रहे न तोर घुराई ॥३ नेह सनेह जो विरथ न होई । कहां क पुरुष कहां के जोई ॥४ दयी लिखा जो ई आहा । ताको हम तुम करिहहिं काहा ॥५ तोर कहा ही कैसे मेटों, सुनिके रही लजाई ।६ गुनति रासि जिन भूलहु, पाछै होइ पछताइ ।।७ टिप्पणी-(१) भयाना-अमानी । (२) जहरासी-जड राशि-कन्या और वृश्चिक, छ घरमें कन्या और आटव घरमे वृश्चिक । (३) अमस्त-आलस्य । (१) जोई-नारी। (6) मेटो-मिटाऊँ, या।