पृष्ठ:चंदायन.djvu/११३

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१०३ (रीलेण्ड्स २२) रयाँ कर्दन जीत पराय निकाह घर वर्दन दर याने रायि महर (विवाह के निमित्त रायि महरके घर जीतका मारात रवाना करना) भार सहस दोइ लादू लावहिं । चॉचर पापा बहुतै पकावहिं ॥१ कीन्ह खिरोरा औ केमारा । फल कंडोर भये असॅभारा ॥२ चीर पटोर चराती माँगा । टॉका लास सो अभरन लागा ॥३ डाँडी असी नवै इक चली । एक एक जाह सोएक एक पहली॥४ सात आठ से घोर पिलाने । भये असवार राइ औं राने ॥५ जस बसन्त रितु टेसू फूल, जिंह अस देसी रात ६६ भाट कलावंत बहुरिया, तस होइ चली वरात ॥७ टिप्पणी-(२) खिरौरा-हसमा उल्लेख जायसीने भी दिया है (पदमावत ५८६), ग्रियर्सनरे अनुसार चॉबल्ने ऑटेसे गर्म पानीमें बनाये हुए डह (बिहार पेजेण्ट लाइफ, पृ० ३४७)। केसारा-सम्भवतः कसार, आटा भून घर शबर मिलाकर बनाया हुआ लड्डू । यह पूर्वी उत्तर प्रदेशमं विवाहके अवसरपर विशेष रूपसे बनाया जाता है। कंढोर-सम्भवतः शुद्ध पाठ सँडोर होगा। इसका तात्पर्य मिठाईसे होगा। (३) टाँका-टक, दिल्ली मुल्तानोंके समयमे प्रचलित चाँदीका सिका जिसमा वजन १६८-१७० ग्रेन था। (1) पिलाने-पोल, हाथी। (७) पलावन्त-गायक । बहुरिया-नर्तकी । ( रीलैण्ड्स २३) निशानीदन जीत रा दर खाने व स्वादने निकाह मियाने यासन व चॉदा (जीतका स्वागत और बापन-चाँदाका विवाद) जहाँ महर वतसार सॅवारी | आन वरात तहाँ सारी ॥१ छींपर नेत पटोर बिछाई । कुसुंभी एक रंग सिंह लाई ॥२