पृष्ठ:चंदायन.djvu/११४

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१०४ दिया सहस चहूँ दिसि वारा । घर बाहर सभ भा उजियारा ॥३ भयी जेउनार फिर आये पानौँ । वेद भनहिं बाँभन परधान ॥४ मानुस बहुत सो देसत रहा । कोउ कहे रात देवस कोड कहा॥५ लाये परन्हि बावन कँह, चाँदा आरति दीन्ह उतार ६ जात सराकत देखेउ नाही, बेटवा भीभर चार ॥७ टिप्पणी-(२) जीपर-सपा हुआ । नेत (स० नेत्र)-इसका उल्लेख वाणभट और उसके पधारे प्राचीन और मध्यरालीन साहित्यमें प्राय मिलता है। क्षीरस्वामीरे क्यनानुसार वह जटामुक था। अन्वन उछे मूम देशमीवस्त्र (सूक्ष्मपाल्वारलाना) बताया गया है । नेवरा अर्थ वटा हुआ भी होता है। यह इस यातका सकेत करता है कि वह बटे सूतका बनता रहा होगा। ऐसा जान पडता है कि यह वस्त्र पहननेरे काममें यम, बाहरी कामरे लिए ही अधिक प्रयुक्त होता था, यहाँ इस पर्श पर विछाये जानेका उल्लेस है। धनपाल (९७२ ई.) ने अपनी तिलकमजरीमे इससे बने वितानका उल्लेख किया है (पृ. ९१)। किन्तु उत्तम कोटि नेत्रका उपयोग परिधान भी होता था ऐसा नल चम्पू (आरम्भिक १०वीं शती) से जान पडता है (१० २१८)। पटोर-देखिये पोडे ३२१७ । (७) भीमर-काना, दोपयुक्त नेत्र । यार-बाल, अल्पवयत । ४४ (रोटेण्ड्स २४) सिफ्त अहेव चाँदा गोयद (दहेजश वर्णन) गाँर बीस भल दायजि पाये । फीनस एक दरख भरि आये ॥१ घोर पचास आन के ठाड़े । टंका लाख हय तै घाँधे ।२ चेरी चेर सहस एक पापा । गाइ भैंस नहिं गिनत बताया। कापर जात चरन को काहा । हीरा मोति लागि जिंह आहा ।।४ सेज सौर कर नाँउ न जानी । कहाँ सेज अस काह बसानों ॥५ चाउर, कनक, साँड घिउ, लोन, तेल रिसवार १६ लाद टाँड मुफराना, वरदै भये असँभार ।।७