पृष्ठ:चंदायन.djvu/११५

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१०५ टिपगी-(१) उत्तर पदला भैस एक अरब पहिराये पाठ भी सम्भव है। किन्नु तीमरे यमसको देखते हुए भेस पाठ यहाँ सम्भव नहीं है। अरपनी अपेक्षा दरव मूल लेखा अधिक निकट है। (९) सौर-ओदमा छिौना, दिल्ली मेरठकी बालीम सौरका अर्थ हर्द भरी रजाई है जो ओढनेरे काम आती है। चित्रावली (२१३१७) से ज्ञात होता है कि रुइ भरे हुआ विगनेक गद्देको सौर रहते हैं (सौरि माह जिन बिनउर टोवा । कुस साधरि सो पैसे सोया (I) जायसीने भी इसका कई स्थापर उल्लेख किया है (१३९४२, ३३१४, ३३६।६, ३४०१२) पर उन्हाने सौर-मुश्ती युग्म का प्रयोग किया है और उसका तात्पर कही ओढने और कहीं बिझनेसे है (देखिये-चासुदेवशरण अग्रवाल, पदमावत ३३५४४ रिप्पणी)। (६) चाउर-चारल | कनक-आग । पॉड-शकर, चीनी । घिउ- घी । रोन-लवण, नमक । बिसयार--ममाण । (७) टॉद-सामग्री । मुकरावा--मुक्लावा, दहेम प्राप्त वस्तुएँ । ४५ (रोलैण्ड्स २५) दुआजदहुम साले शुदन निकाह चॉदा व वाचन व नजदीक नेआमद ने पावन (घाँदा-यावनके विवाह के बारह साल बाद, बावनका घाँदाके पास न ज्ञाना) परख दुआदस भयउ बियाहू । चाँदा तरै सोक जस नाहू ॥१ उनत जोगन भइ चाँदा रानी । नॉह छोट औ अँखियौकानी ॥२ जाकहिं पिउहर बोले लोगू । सो वै चॉद न दीन्हों भोगू ॥३ हाथ पाउ मुस चरम न धोवा । औ तिह ऊपर संग न सोवा ॥४ दइया कौन में कीन्हि बुराई । सरें कचोरें यूडेउ आई ।।५ रात देवस मन झुरवइ, ऊपह सास केरोई ६ चॉद धौराहर ऊपर, पारन धरती सोइ ॥७ टिप्पणी--(१) दुअादस-द्वाददा, बारह । नहू-नाव । (२) उनत-नत, उमरा दुआ गाह~-पति । (५) कचोर-क्टोरा।