पृष्ठ:चंदायन.djvu/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०७
 

१०७ सोन रूप भल (अभरन) आई । दिन-दिन पहिरहु चीर धोआई ॥४ जोलहि पावन होइ सँजोगा | पान फल रस करिहै भोगा ॥५ जो तुम्ह रायि पहर के बेटी, अजहुँ घर न लजाइ ६ तात दूध अवटहु, यहि चाँदा पीय सिराइ ॥७ मूल पाठ-४ भल पिर पहिराद या भल पिर पिर आइ है। पर इनमरो कोद भी प्रसग सगत पाठ नहीं है। हमारी समझम मूल पाठ अमरन रहा होगा । जान पाता है लिपिक आरम्भमा अलिप ओर अन्तका नून ल्सिना भूल और बीच भरको दो बार लिख गया है। टिप्पणी-(३) सातू-सत्तू भो हुए चने, जौ, मटर आदि का मिशित आटा जिसे पानी में घोल अथवा सान कर नमक अथवा शसर मिला पर साया जाता है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार लोक जीवन म बहु प्रचलित भोजन है। (६) कुर-कुल। (७) तात---गर्म । (रीलैण्ड्स २८) जवाब दादने बाँदा मर स्वसभरा (चाँदाका सासको उत्तर) तुम्ह हूँ सास अत्तहिं गॅवानी । रासहु दूध पियायहु पानी ॥१ दही न देइ खॉउ जिहँ लाई । महरै के हो परी अदाई ॥२ सोन रूप का हमरे नाही । जना सहज जेउनारहि साही ॥३ तुम्हरे धी जो सीरें आहा । पीउ न पूँछत बोलहु काहा ॥४ अबलहि में पुर आपन धरा । काम लुदुध निरहें तन जरा ॥५ निसि अॅधियार नीर धन, वीज लवइ भुइ लागि ६ सेज अकेलि फाटि मोरि हिरदै, जो जो देसउँ जागि ।।७