पृष्ठ:चंदायन.djvu/११९

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जस मँछरी देखी विनु पानी । (तरपत) महरै रैन बिहानी ॥२ भानु सँझान न कीत बयारू । कैसे आह सो चॉद दुलारू ॥३ देत सुखासन चले कहारा । नाती पूत भये असबारा ॥४ धानुक पॉयक आगे चैठे । जीत पहर के बाखर केते ॥५ कादि चाँद बैसार सुखासन, तुरत वेग लै आइ ।६ बरनी होइ महर गै, चूंच चॉद के पाइ ॥७ मूलपार-२-वितत। टिप्पणी-(१) दो-दावाग्नि। (३) भानु-सूर्य । संसान-अस्ल हुए । कीत-विया ।बयारू-ज्यालू, रारिका भोजन। (४) सुखासन-पाल्की। (रीलैण्ड्स ३२) आमदने चौदा दर खानये मादर व पिदर व रसीदन सहेभियान चोंदा रा (बाँदाका मैके आना और सहेलियोंसे भेट) चूत मरद चाँद अन्हयाए । सेंदुरी चीर काढि पहराए ॥१ माँग चीर सिर सेंदुर (पूरी) । जानहु चाँद फेर औतरी ॥२ सखी सहेलिन देसन आई । हँस हॅम चॉद बहिरि के लाई ॥३ सेज पिरम रस बनिज सुहागू । पिरत पियार भुगति कम मागू ॥४ अंक बैठि देराहुँ जिंह पासा । कहँहु चाँद कस कीन्ह विलासा ।।५ चॉद सहेलिन पूछि रस, धौरहरॉ लाइ ।६ सीत आह जिनु भरु, कहु कैमें रैन बिहाइ ॥७ मृलपार-२-पूरा। टिप्पणी--(२) सेंदुर पूरी-माँगमें सुदुर भरनेको स्त्रियाँ सेदर परना कहती है। (रीटेण्ट्स ३३) जवाब दादने चाँदा वा सहेलियाने खुद चहार माहे जमिस्ता (घाँदाका सहेलियोंको उत्तर-जाहेके चार मासका पर्णन) जस तुम्ह पूरहु तस हाँ कहाँ । कुर के कान लजाती अहौं ॥?