पृष्ठ:चंदायन.djvu/१२०

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माह माँत मो यो धुंधुवाई | लागी तीउ न पीउ तन जाई ॥२ रैन झमासी परी तुमारू । हिउँ अँगीठी चरा भरारू ॥३ बिरहिन नैन न आग बुझायी । सौर-सुपेती जाड़ न जायी ॥४ अस के सखी निगोतिउँ नॉहाँ । सेज यह निसि जलहर माहाँ ।।५ जस वर दह मारे, हीउँ सरहि सुसाइ १६ पिउ बिरहैं मोर जोपन, फूल जैस कुँभलाइ ।।७ टिप्पणी--(४) सौर मुपेती-छिौना, बिस्तर । (पजाव [प]) बैंपियत कर्दन चाँद पिगर माह पागुन पेश सहेलियान जुदाई यौहर (चाँदा का सहरियों से फागुन माम में पति-विरहको स्थिति का वर्णन करना) कहाँ सखी माह मॉस के याता | करसि रांग सर्भ धनि राता ॥१ कर गहि गरों कन्त ले लावई । उठ के पिया ससि सेज विछावइँ ॥२ निल दिन बाद होइ तिलसानी । हो तिल एक पिय संग न जानी ॥३ रैन डरावन चरवर कारी । घटै न आवइ बजर के मारी n४ जागत लोयन आधी राती । पहरेदर पिउ घर तरसहिं राती ॥५ रैन तुमार जनु कछु घोरों, रहौं भू पर गिय लाइ १६ सौर मुपेती कन्त चिनु, तिल एक थाँभ न जाइ ॥७ टिप्पणी-शीष में पान्गुन माम का उल्लेख है । इटवर में माघ मास का वर्णन है । (१)माह-माघ । (पंजय []) (पाल्गुन वर्णन) फागुन परन झरहिं बन पाता | सेलहि फाग सिंह सद पिउ (रावा')॥१ फूल मुहावा पूज औ करना । बहुल बईठ देखि दइ धरना ॥२