पृष्ठ:चंदायन.djvu/१२४

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११४ (रोहण्ड्स ३७) इस्तफ्हाम नमूदन बाजिर पेशे सल्पे शहरे गोवर (गोवरपासियोंसे वाजिरका प्रश्न) हौं मारेउँ इँह गाँव तुम्हारे । नैन बान हत गयी पिसारे ॥१ रकत न आवा दीस न घाऊ । हिये साल मोर उठे न पाऊ ॥२ कितै मैं देख धौराहर ठाढ़ी । हते नैन जिउ लै गइ काढ़ी ॥३ कौन वनिज मोर आगै आवा । लाभ न विसवा मृर गँवावा ॥४ हौं तुम कहेउँ बोल पतियाहू । 6 मारेउ तिहि कहू न काहू ॥५ पूछि देखि तिह घायल, रात पीर जो जाग ६ ___ गयो सो जान जिंह मेला, कैसो जान जिय लाग॥७ टिप्पणी-(१) पिसारे-विषात् । ७० (रीरैम ३७) गुरीर नने बाजिर अज शहर गोवर वेतसे राय महर (राय महरके भयसे बाजिरका गोपर नगर छोड़कर भागना) वाजिर देखि मींचु मोर आई । गोवर तजि हौं जाँउ पराई ॥१ कहा दीख मँह नींद न (आवइ)। भृस गयी अन-पानि नभावइ ॥२ जो सो तिरी फिर दिखरावइ । ओहट मींचु नियर होइ आवइ॥३ महर पास जो कहि कोउ जाई । खिन एक भीतर खाल मढ़ाई ॥४ विधना क कहा विसेखें कीजा | आने वाँच पर सासो जीजा ||५ चला छाड़ि के घाजिर, वसा और ठहँ जाइ ।६ चाँद रहे मन भीतर, सँवर सँवर पछताइ ॥७ मूल पाठ-२-आवा। टिप्पणी-(१) मीचु-मृत्यु । (२) भन-पानि-अन-पानी, साना-पीना ।