पाठान्तर-बम्बई प्रति-
शीर्षक-शुनीदने गव रूपचन्द नामे चाँदा व पुरसीदने याजिर रा सूरतो
जेवाये ऊ (चाँदाका नाम मुनकर राव रूपचन्दकी बाजिरसे उसके
सौन्दर्यके प्रति जिज्ञासा )।
१--अहत | २ कोइ । ३-रैस | ४-आनी। ५-सनवानी।
६---गाँउ कहउ अरु ठाँउ विचारी | ७-लसन कहि औ करन बिसेखी ।
८-कौन । ९-रूप। १०-कस ताह ।
टिप्पणी-(२) चटपटी-छटपटी, उत्मुक्ता ।
(३) तुरी-(स• तुरग> तुरय> तुरीय> तुरी) घोडा। पाखर = पसर,
फरच।
(५) विसेखी-विशेष । अछर-अप्तरा।
(७) पिंढझ--पिण्ड, शरीर । पराक्रित-प्रति, स्वभाव ।
७५
(रीलैण्ट्स ४२)
सिपते पके चाँदा गुफ्तन बाजिर वर राव रूपचन्द
(राय रूपचन्दसे याजिरका घाँदाके माँगका वर्णन)
पहले माँग क कहउँ सोहागू ] जिंहिं राता जग खेले फागू ॥१
माँग चीर सर सेंदुर पूरा । रेंग चला जनु कानकेनरा ॥२
दिया जोत रैन जस पारी । कारें सीस दीस रतनारी ॥३
मैं वह माँग चीर तर दीठी । उक्त सूर जनु किरन पईठी ॥४
मोत पिरोय जोत पैसारा । सगरें देस होइ उजियारा ॥५
राउ रूपचंद बोला, फुनि यहै बँड गाउ ।६
मॉग सुनत मन राता, बाजिर करब विपाउ ॥७
टिप्पणी-(१) राता-अनुरत्त ।
(२) संदुर पूरा माँगमें सिन्दूर भरनेकी स्त्रियों सिन्दूर पूरना कहती हैं ।
कानजरा कनरराजूरा, लाल्वर्ण का एक लभ्या कीडा ।
पृष्ठ:चंदायन.djvu/१२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११७