पृष्ठ:चंदायन.djvu/१२८

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७६ (रोलैण्ड्स ४३) सिफ्ते मुयेहा चाँदा गोपद (पेश पर्णन ) भँवर वरन सों देखी बारा । जनु विसहर लर परे भंडारा ॥१ लाँब केस मुर [बॉध'] धराये । जानु सेंदुरी नाग सुहाये ॥र चेनी गूंद जूहि अरमावइ । लहर चदहि बिस सतक दहावइ॥३ देखत विस चढहि मॅतर न माने । गारुर काह अनारी जाने ॥४ जूडा छोर झार सो नारी । देवसहिं रात होड अँधियारी ॥५ डंक चढा सुन राजा, परा लहर मुरझाइ ६ बात कहत जिह बिस चढहि, गारुर काह कराइ ॥७ टिप्पणी-(१) भंवर-भ्रमर, काला । यरन-वर्ण, रग। बारा-पाल, पेश । विसहर-विषधर, सर्प । हर-ल्ड, ल्डी, पत्ति । (२) मुर-मुड, मूंड, सिर । (४) गारर-विष वैद्य, सर्प पे विष को उतारने वाला । काह-क्या । (५) जूदा-पंधे हुए देश | छोर-खोन कर । झार-झाड । ७७ (रोटेण्डस ४४) सिफ्ते पेशानी चाँदा गोयद (ललाट पर्णन) देखि लिलार विमोहे देवा । लोक तज फुटुंप कीनहि सेवा ॥१ दूज क चाँद जानु परगसा । कै सर सोक्न कसौटी कसा ॥२ बदन पसीज बूंद जो आयहिं । चाँद माँझ जनु नसत दिखावहिं ॥३ मुँह दप साह न देखी जायी । सरग सूर जनु अदनल आयी ।।४ ससहर रूप मई उठ रेखा । मैं न अकेलें सभ जग देखा ॥५ भोर चढ़ा विस उतरा, राजे करपट लेत १६ सुन लिलार उठ बैठो, वाजिर कंचन देत ॥७