पृष्ठ:चंदायन.djvu/१२९

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टिप्पणी--(१) लिलारल्लाट! (२) खर-सरा, शुद्ध | मोवन-मुवर्ण, सोना । ७८ (रीरेण्ड्स ४५४) (भौद वर्णन) मोहें घनुक जनु दुइ कर वाने । पंचयान गुन सींच सयाने ॥१ यान विसार सान दइ लावइ । पारध जैस अहेरै आवइ ॥२ अरजुन धनुक सरग में देसी । चाँद भौंह गुन सोइ बिसेखी ॥३ सर तीखे जिंह मार फिरावइ । ठौर परे सो बेगि न जावइ ॥४ चाँद भौंह गुन ऐसे अहा ! मूंड न डोल जु गाइ कहा ॥५ चन सिकार छंद बाजिर, धानुक मई सो नारि ।६ सहन मिरग भा राजा, मया मोह गये पिसारि ॥७ टिप्पणी--(१) पचवान-परशर, कामदेव । (२) बिसार-विषाक्त । सान-शान । दह-देवर । पारध-शिकारी। महेरै-शिकार को। (रीलैण्ड्स ५५) सिफ्ते चश्मदाय चाँदा गोयद (नेत्र वर्णन) नैन सरूप सेत महँ कारे । खिन खिन वरन होंहि रतनारे ॥१ अम्ब फार जनु मोतिह भरे । ते लइ भौंह के तर धरे ॥२ सहजहि डोलहि जानुमधु पिया । कै निसि पवन झकोर दिया ॥३ अलत समुंद मानिक भर रहे । राइ थाक कर गाँठन गहे ॥४ नेन समुंद अति अवगाहा । यूहि राइ न पावहिं थाहा ॥५ भीवर नैन चाँद यस आये, दीखह दिन आह । सरग जायि चढ़ बैसे, राजा पृण्हु काह 11७