पृष्ठ:चंदायन.djvu/१३

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कुमार वर्माने अपने मूल नियन्धमें दाऊद के सम्बन्धमें क्या सिखा था, यह तो हमारे सामने नहीं है, किन्तु उसके प्रकाशित रूपका जो दूसरा सस्करण उपलब्ध है, उसमें कहा गया है कि खुसरोका नाम जय समस्त उत्तरी भारत में एक महान कविके रूपमें फैल रहा था, उसी समय मुल्ला दाऊदका नाम भी हिन्दी साहित्यके इतिहासमें आता है । मुल्ला दाऊद की एक प्रेम कहानी प्रसिद्ध है, उसका नाम है चन्दावन या चन्दावत। यह प्रन्य अभीतक अप्राप्य है और इसके सम्बन्धमें कुछ भी प्रमाणित रूपसे ज्ञात नहीं है। साथ ही उन्होंने दाऊदको अलाउद्दीन खिलजीका समकालीन मानते हुए उनका कविता-काल वि० स० १३७५ (१३१७ ई०) ठहराया। अपने पूर्ववर्तियों के समान ही रामकुमार वर्मा ने भी अपनी सूचनाका सूत्र यतानेकी आवश्यकता नहीं समझी। पर देसनेसे लगता है कि उन्होंने मिश्रवन्धु और पर्थगालके कथनको ही जोडकर अपने मन्दोंमें रस दिया है। उनकी यह सूचना अवश्य नयी है कि दाऊदकी पुस्तकका नाम चन्दावन या चन्दावत था । किन्तु प्रमाणाभावमें यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उनके पास मिश्रबन्धु और बर्थवालके कथनके अतिरिक्त अपना कोई निजी सूत्र भी था। हो सकता है, यह बात पीछे शात सर्यों के आधारपर प्रस्तुत सस्कारणमें जोड दी गयी हो । मूल सूत्रों के अभावमे इन विद्वानों के कथनका शोधकी दृष्टिसे कोई महत्त्व नहीं है। दाउदके सम्बन्ध में साधार कुछ कहनेका प्रयत्न पहली बार ब्रजरलदासने १९४७ ई. (वि० स० १९९८)मे किश। उन्होंने अपनी पुस्तक खडी बोली हिन्दी साहित्यका इतिहासमें मुगलकाल के सुप्रसिद्ध इतिहासकार अबदुर्कादिर यदा- यूनी कृत मुनसखर-उत-तबारीसमें उल्लिखित इस तथ्यकी ओर ध्यान आकृष्ट किया कि दाऊद चन्दायन की रचना फीरोज शाह तुगलक (१३५१-१३८८ ई०)ने शासन कालमे हुई थी। यदायूनीका कथन इस प्रकार है :--सन् ७७२ (हिजरी) (१९७० ई०)में वजीर खानजहाँकी मृत्यु हुई और उनका जौनाशाह नामक पुत्र उसी पद पर प्रसिद्ध हुआ और उसी के नाम से मौलाना दाऊदने चन्दायन (चन्दावन)को, जो हिन्दी भापाका एक मसनवी है, जिसमें लौरक (नूरको और चन्दानामक प्रेमी-प्रेमिकाका वर्णन है और वास्तविक अनुभवसे परिपूर्ण हैं, पद्यवद्ध किया। इस देशमे अत्यंत प्रसिद्ध होनेके कारण उसकी (चन्दायन) प्रशंसा अपेक्षित नहीं है। दिल्लीमें मखदूम शेख तकीउद्दीन वायज यानी इसके कुछ सार्थक पद मेवर (व्यास पीठ)से पढ़ा करते थे और उनके सुननेका लोगोंपर विशेष प्रभाव पड़ता था। उस समयके कुछ विद्वानीने शेखसे पूछा कि इस हिन्दी मसनवी के अपनाने का कारण क्या है तो उन्होंने उत्तर दिया कि यह जोक (रुचि)के समस्त नमो तथा अथासे युक्त है तथा प्रेम और भक्ति के जिज्ञासु लोगोंके उपयुक्त है। (उसम) कुरानके १ हिन्दी माहित्यका आलोचनात्मक इतिहास, प्रयाग, दिलीय सस्करण, १९५४ ६०, पृ० १३१॥ २ सही बोली हिन्दी साहित्यका इतिहास, वाशी) म० १९९५, पृ० १४९५१