पृष्ठ:चंदायन.djvu/१३०

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१२० (रीलैण्ड्स ४६ अ) सिफ्ते वीनीये चाँदा गोयद (नासिका वर्णन) मुँह मॅह नाक अइस क सिंगारू | जनु अभरन ऊपर के हारू ॥१ सुवा नाक जो लोग सराहा । तिह जाह अधिक ते आहा ॥२ सहज ऊँच पिरिथ में सब जानाँ । औ सब ताफर करहिंयखाना ॥३ तिलक फूल जस फूल सुहारा । पदुमिनि नाकभाउ तस पावा ॥४ नाक सरूप अइस मैं कहा । जानु खरग सोन कर अहा ॥५ नॉ परिमल फल कस्तूरी, सबै बास रस लेइ ६ खिन मुरसै राउ रूपचंद, अरथ दरव सन देइ ॥७ टिप्पणी-(१) भइस-इस प्रकार 1 फ-या। (२) मुवा-शुरु, तोता। (४) तिलक-एक प्रकारका पुष्प । पुर--नाकी पुली, नारमें पहननेवा आभूपण | सम्भरत साहित्यमे नारके आभूषणका यह प्राचीनतम उल्लेए है। मुसलमानी शासनवे आरम्मसे पूर्व नाव विसी आभूषणकी चर्चा न तो पिसी भारतीय साहित्यमे १ और न फलामे हो उरावा अपन पाया जाता है। पदुमिनी-पद्मिनी जातिरी स्त्री। (६) येना-सरा, वरण । परिमए -कई मुगन्धियों को मिलाकर बनाई हुई पास विशेष (७) भरप-अर्य । दरर-द्रव्य, धन । ८१ (रीरेण्ड्स ४६य) सिफ्ते पहाय चाँदा गोयद (भोट पर्णन) राचा औ रत अधर निरासी । जनु मनुस के रकत पियासी ॥१ लसी दरेरै दरेरै लीसी । रकत पियइ मनुसैं गुन सीखीर