पृष्ठ:चंदायन.djvu/१६

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था और उसमें किन छन्दोका प्रयोग हुआ था। मुनतखव के प्रमाण प्रकाश में आ जानेके बाद दाऊदके समयके सम्बन्धमें जो मिथ्या धारणाएँ पैली थीं, उनका निराकरण हो जाना चाहिए था 1 पर परशुराम चतुर्वेदीने उसका विचित्र अर्थ लगा- कर एक नया भ्रम प्रस्तुत कर दिया । कदाचित् उन्होंने मिश्रवन्धु और रामकुमार वर्मा कथनके साथ मुनतखबके क्थनका समन्वय करनेका प्रयत्न दिया। १९५३ ई० में कमल कुलश्रेष्ठका शोध निबन्ध हिन्दी प्रेमाख्यानक काव्य प्रकाशित हुआ। इस ग्रन्थमें उन्होंने पूर्व शात उपयुक्त अधिकाश सूचनाओं को, जो उन्हें उपलब्ध हो सकी, एकन कर बदायूनी क्थनपर बल देते हुए मत प्रकट किया कि चन्दायन का रचनाकाल वि० सं० १४२७ के निकट था। किन्तु इस ग्रन्थमें दी गयी महत्वकी सूचना यह है कि चन्दायन की कोई प्रामाणिक प्रति अभी- तक नहीं मिल सकी। एक अप्रमाणित-सी प्रति डा० धीरेन्द्र वर्माने अवश्य देखी है । परन्तु उसे वे कुछ कारणोसे विशेष ध्यानपूर्वक नहीं देख सके और इस कान्यके सम्बन्धमें कुछ निश्चयपूर्वक बतलानेमे असमर्थ हैं। पाद टिप्पणीमें इस सम्बन्धमे कुछ अतिरिक्त सूचना भी है जो इसका प्रकार है-बीकानेरके श्री पुरुपोत्तम शर्माके पास इस ग्रन्थको एक प्रति है । शर्माजीने यह पोथी एक सज्जन द्वारा प्रयाग भेजी थी, परन्तु उन्होंने पोथीकी परीक्षा अच्छी तरह धीरेन्द्र वर्माको नहीं करने दी। कुरश्रेष्ठकी इस पादटिप्पणीके अतिरिक्त अन्य सूत्रसे भी इस प्रतिके सम्बन्धमे हमें जो जानकारी प्राप्त हुई है, उससे भी ज्ञात होता है कि धीरेन्द्र वर्माने उसकी प्रामाणिकतामें सन्देह प्रक्ट क्यिा था। धीरेन्द्र वर्माने इस प्रतिको चाहे जिस भी दृष्टि से देखा हो, चन्दायनकी किसी प्रकारको प्रतिवे अस्तित्वका शान भी अपने आपम महत्वका था । परवर्ती अनुसन्धित्सुओका ध्यान इस ओर जाना चाहिये था । खेद है किसीने इस ओर ध्यान नहीं दिया । १९५५ ई० मे प्रेमाख्यानक काव्य और हिन्दी सूपी साहित्यसे सम्बन्ध रखनेवाले तीन अन्य प्राय एक साथ ही प्रकाशित हुए। ये तीनो ही ग्रन्थ, शोध निबन्ध हैं, जो विभिन्न विश्वविद्यालयोंके समक्ष पी०एच०डी० की उपाधि निमित्त प्रतुत किये गये थे। ये है-हरीकान्त श्रीवास्तव कृत भारतीय प्रेमाख्यानक काव्य, विमलकुमार जैन कृत सूफी मत और हिन्दी साहित्य और सरला शुक्ला कृत जायसीके परवर्ती हिन्दी सूफी कवि। विषयको दृष्टिसे श्रीवास्तव अन्यका विस्तार सबसे अधिक है। उसमें दाऊदके अन्य सम्बन्धमें विशेष रूपसे और विस्तृत जानकारी की अपेक्षा पी जाती है, किन्तु श्रीवास्तवकी जानकारी इस बाततक ही सीमित है कि सर्व प्रथम मुल्ला दाऊदकी नृरक चन्दा कहानीके याद कुतवनकी मृगावती मिली। १. सपा कान्य समद, प्रयाग, (द्वितीय सस्करण), म० २०१३, पृ० ६२-६३ । २ हिन्दी प्रेमाख्यानक कान्य, प्रयाग, १९५३ ई०,१०८। ३ वही. १०८, पा०२० २१ ४ भारतीय प्रेमारयानक कान्य, काशी. १९५५१०, पृ० २१ ।