पृष्ठ:चंदायन.djvu/१६६

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१५६ आठ आइ दोइ आनें, जैस असार कै मेह ६ लोह पहिरे सब ठाढे, तिल एक सूझ न देह ॥७ टिप्पणी-(२) दाकवइ-उन्देदावाहरु । (४) साहने-सैनिक, प्रधान । (६) असार-आपाट। (रीलैग्ड्स ९६) सिपते जग वर्दने बाँठा या लेरक व हनीयते खुर्दने ऊ (पाटा-लोरफ युर : वाटा की हार) उभरे सड़ग कुन्त तरवारी । घिरे एक लह होइ रनमारी ॥१ टहि मुण्ड रुण्ड धर परहीं । जियकर लोभ न चिंत महँ धरहीं।।२ खरल दंडाहर वाजहिं तारा । भये भाग दर रन रतनारा ॥३ जस फागुन फूलहिं बन टेस्। तस रन रकत रात भये भेस् ॥४ थाजहिं भरि सींग ओ तूरा । दर भा चाचर रकत सिंदूरा ॥५ परे पसरिया चहुँ दिसि, कुन्त राज सर लाग ६ पहर वीर कुछ उपरे, चाँठा जिउ लइ भाग ॥७ टिप्पणी-(३) देवाहर-दण्डताल ताल देनेका वाद्य । तारा-करताल । (४) टेसू-~-पलासका पूल । यद्द पागुनके महीने में होलीके आसपास पुस्ता है । इसका रंग गहरा लाल होता है। जन पूलता है वो पूरे वृक्ष पर डा जाता है और दूरसे देखने पर जान पडण है कि नगलम आग लगी हुई है। (५) भेरि-मृदगसे मिलता जुलता चाय। अजमें लम्ची तुम्हारे समान एक पानेको भी भेरि कहते हैं। मांग-(स० गिन>सिn>सींग)-पशुफे मागसे यना पूर्वनेका यार । आदने-अपपरीम नक्सारमाने यानों में इसका उल्लेख है। वहाँ पहा गया है कि यह गायत्री मांगवी शपल्या तावका यनता है और एक साथ दो बजाये जाते है। दा-पायुका पना मुंहसे निरा पाजा | पदाचित इसे ही आकर तुम्ही कहते है। (६) परिया-पसर (वयच) पारी सैनिक । (७) उपरे-तारम अधिक।