पृष्ठ:चंदायन.djvu/१६७

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१५७ १३८ (रेण्ड्स ९७) मुशावरत क्दने राव रूपचन्द या याँठा (राध रूपचन्दका बाटासे परामर्श) राइ कहा बॉठा कम कीजइ । सब दर चाँप नगर किन लीजड ॥१ जो तिहँ राइ आपुन पॅज्वाई । चॉद सनेह झुझ पुनि पाई ॥२ पहिरै सॉड अनै नस जोरी । देसहिं देव तैतीसो कोरी ॥३ पेसहि पेसहिं भयउ अभेरा । चला भाजि राजा कर खेरा ॥४ चाँदी कारन जूझ पुनि पायी । औ तिहँ रक्तहँ भयउ पिरावा ॥५ लै जो पखरिया समता महें, बॉठह कम कीज ६ के चॉदा ले जाइ राजा, के गोवराँ जिउ दोज ॥७ टिप्पणी-(२) दूसरी पतिका उत्तर पद और पाँचवी पत्ति का पद लगभग (५) प्रतिरे अनुमार पाठ ठीक होते हुए भी पूरी पत्तिये शुद्ध पाठ होने में सन्देह है। १३९ (रीलेण्ड्म ९८) जवान दादन बाँठा मर राव स्पचन्द रा (बाटाका उत्तर) राइ परारिया सौ महिं देहू । अदमी तीन चार तुम्ह लेह ॥१ लै अमरों हो राउत जहाँ । पाछै मोर न छाँडहिं वहाँ ॥२ चला महर ससि परी मानी। बॉठे पिन सिंह के आनी ॥३ दुरि लै बाँठा तिहँ भुइँ गयउ । जहाँ अभेर महर सों अभयउ ॥४ दूध पियावत फिरहिं न कोई । अस के मय काल कित होई ॥५ परे पसरिया नौ दस, भल बान होइ फाग ६ महर सनाह दृदि गा, ओछ साँड धर लाग ॥७