पृष्ठ:चंदायन.djvu/१८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७४
 

१६१ (रोरेण्ट्स ११९ : यम्बई ) आमदने राल्के गौवर दर सानये महर व नशिस्तने ईशा (नागरिकोंका महरके घर आकर पैठना) महर मंदिर सब नेत पिछाई । के सॅडवान कुण्ड भराई ॥१ गोवर नोता हुतं सोइ बुलाया । तिहतीसों पार सभै लै आवार घटहि न सूझे सरह जनु चली । उपना देस मॅदिर गा भरी ॥३ वैस कुँवर गै पातिहँ पॉती। परजा पौन सोभाँतहिं भाती ॥४ लोरक महरै पाट बसारा । गहन मार मैं चाँद उपारा ।।५ परन चार भरि बैठे, अगनित कही न जाइ ॥६ खेत साथ लहि आँगन, तोहु लोग न समाइ ॥७ पाटान्तर-यम्प प्रति- शीरक-पराज कर्दने पदूरी दर सानये राय महर (महरये घर भोजकी तैयारी)। १-महरे । २- राम | ३-हुँ । ४-तैतीसो ! ५--नलि । ६-- यदि 10-लोग। १६२ (पम्यई १२; रीटेम १२०) आवदंने तमाम दर माल्स हरजिन्य (गना प्रकार के व्यंजनीका परसा गाना) चटी पार पसारि पॅवारा' । भात परोसहि झार मुवारा ॥१ पतरी भरहिं मूंज यरुतानॉ। भाँतहि भाँति लोर पहँ आना ॥२ मास मसोरों सरवाँ फुनि परी । दोनों सी सी चुन पत धरी ॥३ लै मतमार तुलाने नाऊ । घिरत साँड कीन्ह पैराऊ ॥४ धरे पकनान जेवहूत कहे । फल सन्धान लास एक अहे ॥५