पृष्ठ:चंदायन.djvu/१८६

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१७६ १६४ (रोम १२२) दर खाने आवदंने लोरक राव गिरिपा पदने गोलिन (रोरकका घर आना और सोलिना दुखी होना) लै लोरक घर सेज ओल्लारा । वहहिं नैन कॉखइ असरारा ॥१ सोलिन रोयइ काह यह भया । मोर बार के पचहँडा दिया ॥२ लोग कुटुंब बन्धु जन आये । पंडित चंद सयान बुलाये ॥३ धरनॉरिका चैद अस कहहीं । चॉद सुरुज दुइ निरमल अहिहीं] ॥४ यात न पित्त रकत न सीऊ । ताप न जूरी चित्त सँजीऊ ॥५ • देउ न दानों सरकॉ, यह सीर परियारि ।६ मन काम कर विधा, तो बहु ररे मुरारि ॥७ टिप्पणी-(१) भोल्गरा-निर्जीव होकर पड रहना । कबिइकराहे । (२) पार-बार, पुत्र । पचहँदा-भरणके दसच दिन घरमे निसल्वर वाहर दूर रसे जानेवाले मिट्टी पाँच पान: निसी व्यकिके रोगो ___ दूसरे व्यक्ति के ऊपर डालनेकी क्यिा; उतारा पतारा । (३) रायान-ओझा, झाड पूँक करनेवाले। (४) धर-परड पर । नारिका-नाडी। (५) मीऊ-शीत | ताप-ज्वर । जूरी-टप्ट गवर आनेवाला यर; मन्गेरिया । (६) देउ-देव । दान-दानव । सीर-रोग । परियारि-बात पहा । १६५ (गलंण्ड्म १२३) ऐजन (ल्ह); दर गिरिये सोलिन गोपद (खोलिना पिलाप) मुरज रैन महँ गयउ लुकाई । चॅदर जोत निमि आगें आई ॥१ खोलिन नीर दार सरपिया । मकु मूयों महँ लोरक जीया ॥२ ही अस जीउ जीउ इह दे। लोरक केर माँग के लेॐ ॥३