पृष्ठ:चंदायन.djvu/१८७

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१७७ पर मॅह बूढ़ी दुस लेजाई । जिनु मोरे (घर) दिया बुझाई ॥४ यह संताप के कही कहानी | कार रात दुस रोइ बिहानी ॥५ फिर सर परकासा, दिनकर कियो अजोर (६ सोलिन रोइ डफारा, पार जियायहु मोर ॥७ मूल पाठ-कर। टिप्पणी-(१) सरपीमा-कोसा । (६) अजोर-उजाला। (७) डफारा-(धा० डकारना) गला पाडर रोना, चिल्लाना। मोर-मेरा। १६६ (बम्बई १५, रीरेण्ड्प्त १२४) रपतने पिरस्पत दर रानये गेरक (विरस्पतका लोरपके घर जाना) धाई निरस्पत हाटहिं गयी । कीन पात' कछु निसहन लयी ॥१ कारुन सबद मुमन दुहुँ परा । मुस फिराड पी आगें धरा ॥२ तूं इहँ करिह काह मयारूं । जाइ विरस्पत झाँखा बारू ॥३ खोलिन देसी महर मॅडारी । कर गहि पाट आन बैसारी ॥४ काहे तुम्ह रोबहु परधाना' । हीउँर मोर सुनत चरीना ॥५ मोर पार जस भुलवा, घरी घरी चिहसात ६ अन न साई अन पानी, दिन दिन" जाड बुमलात ॥७ पाठान्तर-रीण्ड्मपति- शीर्षक---रफ्तने निरस्पत हानेकारी दर सानये लोरक (कामवे बहाने लोरवये घर पिरस्पतका जाना) १-राज । '२-हाटहि । ३-पान | ४-वस्य । ५-भीतर । ६-तेउ नेह करिहै होय मयार।-परधाना12-~मोर बार भुरघा बर । ९-साँव । १०-देह जाद। टिप्पणी-(१) कोन बातयाते रिया, (पाठान्तर अनुमार) कीन पान-पान गरीद पर । बिसहन--सीदा, प्रेय वस्तु ।